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________________ 187 आत्मा ही है शरण इस णमोकार महामंत्र की दूसरी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें किसी से कुछ मांग नहीं की गई है, इसमें भिखारीपन नहीं है; पूर्णतः निःस्वार्थभाव से पंचपरमेष्ठी के प्रति भक्तिभाव प्रकट किया गया है, उसके बदले में कुछ भी चाहा नहीं गया है । जगत के अन्य जितने भी मंत्र हैं, उन सभी में कुछ न कुछ मांग अवश्य की जाती रही है और कुछ नहीं तो यही कहा जायेगा कि "सर्व शांति कुरू-कुरू स्वाहा ।" यद्यपि इसमें व्यक्तिगत रूप से कुछ भी नहीं चाहा गया है, सबके लिए पूर्ण शान्ति की कामना की गई है, जो बहुत अच्छी बात है; क्योंकि जो कुछ चाहा गया है, वह सबके लिए चाहा गया है, सबके हित के लिए चाहा गया है, विषय-कषाय की पूर्ति की कामना ___ नहीं की गई है, शांति की ही कामना की गई है, तथापि चाहा तो गया ही है, मांग तो की ही गई है । ____यह तो आप जानते ही हैं कि भारतीय संस्कृति में मांगने को सर्वाधिक बुरा बताया गया है । कहा गया है कि - रहिमन वे नर मर गये जो नर मांगन जाय । उनसे पहले वे मरे जिन-मुख निकसत नाहि ॥ उक्त छन्द में मांगनेवालों को मरे हुए के समान बताया गया है । कहा गया है कि जो किसी के दरवाजे पर मांगने जाते हैं, समझ लो वे लोग मर ही गये हैं। क्योंकि मांगना स्वाभिमान खोये बिना संभव नहीं है और जिनका स्वाभिमान समाप्त हो गया है, वे जिन्दा होकर भी मृतक समान ही हैं । ___ इसमें एक बात और भी कही गई है कि मांगनेवाले तो मृतक समान _हैं ही, पर मांगने पर मना करनेवाले तो उनसे भी गये बीते हैं । उन्हें तो मांगनेवालों से भी पहले मर गया समझो ।
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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