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________________ आत्मा ही है शरण इसप्रकार अमेरिका और यूरोप में वीतरागी तत्त्वज्ञान का प्रचार-प्रसार करते हुए १९ जुलाई, १९९० को जयपुर आ गये, क्योंकि जयपुर में २२ जुलाई, १९९० से शिक्षण शिविर आरंभ होना था । 184 लगभग सर्वत्र ही कुन्दकुन्दशतक की जिन प्रारम्भिक गाथाओं को आधार बनाकर इस वर्ष प्रवचन किए गये, वे गाथाएँ मूलतः इसप्रकार हैं अरुहा सिद्धायरिया उज्झाया साहु पंच परमेठ्ठी । विह चिट्ठहि आदे तम्हा आदा हु मे सरणं ॥ २ ॥ सम्मतं सण्णाण सच्चारित हि सत्तव चेव । चउरो चिट्ठहि आदे तम्हा आदा हु मे सरणं ॥३॥ इनका हिन्दी पद्यानुवाद इसप्रकार है : अरहंत सिद्धाचार्य पाठक साधु हैं परमेष्ठि पण । सब आतमा की अवस्थाएँ आतमा ही है शरण ॥ २ ॥ सम्यक् सुदर्शन ज्ञान तप समभाव सम्यक् आचरण । सब आतमा की अवस्थाएँ आतमा ही है शरण ॥ ३ ॥ : कुन्दकुन्दशतक में संकलित ये दूसरी व तीसरी गाथायें आचार्य कुन्दकुन्द के अष्टपाहुड के मोक्षपाहुड की १०४वीं एवं १०५वीं गाथाएँ हैं । यह तो सर्वविदित ही है कि आचार्य कुन्दकुन्द के द्विसहस्राब्दी समारोह के अवसर पर आचार्य कुन्दकुन्द के पंचपरमागमों में से १०१ गाथाओं का संकलन कर यह कुन्दकुन्दशतक बनाया गया है, जो अनेक भाषाओं में प्रकाशित होकर दो वर्ष के अल्पकाल में सवा लाख से भी अधिक लोगों के हाथ में पहुँच चुका है । इसके हिन्दी पद्यानुवाद के बीस हजार से अधिक संगीतमय कैसेट भी देश-विदेश में घर-घर पहुँच चुके हैं और प्रतिदिन सुने जाते हैं । आचार्य कुन्दकुन्द की ये गाथाएँ अपने आप में महामंत्र हैं । इनमें सरल - सुबोध भाषा में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात कही गई है । उक्त गाथाओं
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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