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________________ आत्मा ही है शरण 182 पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट को देकर गये हैं । उनकी अमेरिका में जिनवाणी घर-घर पहुँचाने की तीव्र भावना रहती है । तदर्थ उन्होंने धर्म के दशलक्षण गुजराती ५०० एवं हिन्दी २५ तथा सत्य की खोज गुजराती ५०० व हिन्दी २५ पुस्तकें मंगाई हैं, जिन्हें वे अमेरिका में वितरित करेंगे । ६ जुलाई, १९९० को वोस्टन पहुँचे, जहाँ ७ व ८ जुलाई, तदनुसार शनिवार व रविवार जिनमन्दिर में प्रवचन व चर्चा के कार्यक्रम रखे गये । उपस्थिति भी अच्छी थी और कार्यक्रम भी प्रभावक रहे । ९ जुलाई को न्यूयार्क आये और वहाँ एक प्रवचन हुआ । इसप्रकार अमेरिका की यात्रा समाप्त करके ११ जुलाई, १९९० को लन्दन पहुँच गये, जहाँ प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी भगवानजीभाई कचराभाई के घर पर ठहरे और सात दिन तक लगातार प्रतिदिन सायंकाल हॉल में तथा प्रातःकाल भगवानजीभाई के घर पर प्रवचन व चर्चा के कार्यक्रम रखे गये। यह तो सर्वविदित ही है कि लन्दन में भगवानजीभाई की सक्रियता से निरन्तर स्वाध्याय की प्रवृत्ति चलती रहती है । इसकारण बहुत से भाई-बहिनों को अच्छा तत्त्वाभ्यास है । अतः व्याख्यान भी गंभीर चलते हैं और चर्चा भी अच्छी चलती है । भगवानजीभाई की भावना वीतरागी तत्त्वज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए साहित्य की कीमत कम करने की रहती है । इसकारण उन्होंने पडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट एवं उससे संबंधित संस्थाओं की ओर से प्रकाशित होने वाले कतिपय सत्साहित्य की कीमत कम करने के लिए लागत मूल्य का तीस प्रतिशत अनुदान देने के लिए तीन लाख रुपयों की घोषणा की। यह घोषणा भगवानजीभाई ने स्वयं अन्तर की प्रेरणा से ही की थी। हमने इसके लिए कोई प्रेरणा उन्हें नहीं दी थी । यह तो सर्वविदित ही है कि हम कभी किसी को कहीं भी किसी भी प्रकार का खर्च करने की, दान देने की कोई प्रेरणा न तो व्यक्तिगत ही देते हैं और न सामूहिक ही,
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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