SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा ही है शरण 180 डॉ. प्रवीणभाई तो मानो धर्मप्रचार के लिए समर्पित ही हैं । उनके स्वाध्याय कक्ष में स्वयं के स्वाध्याय के लिए तो सैंकड़ों ग्रन्थ हैं ही, पर वे यहाँ-वहाँ से जहाँ से भी उपलब्ध होती हैं, धार्मिक पुस्तकें मंगाकर सम्पूर्ण अमेरिका में सप्लाई करते रहते हैं । इसप्रकार जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में उनका बहुत बड़ा योगदान रहता है । ___ उनके पास हमारे उन प्रवचनों के वे कैसेट तो हैं ही, जो विगत वर्षों में उनके यहाँ हुए है, पर उन्होंने वाशिंगटन डी.सी. के शिविरों में विगत सात वर्षों में हुए प्रवचनों के कैसेट भी मंगाकर अपने पास रखे हैं । उन्होंने इन सम्पूर्ण प्रवचनों को स्थानीय मुमुक्षु भाइयों को तो अनेक वार सुनाया ही है, साथ में उनका संक्षिप्त सार लिखकर सम्पूर्ण अमेरिका के प्रमुख लोगों के पास भेजा है । सभी को यह भी लिखा है कि इन प्रवचनों में से जो भी प्रवचन आप चाहें, उनकी कापी करके आपको भेजी जा सकती है । यह कार्य वे विशुद्ध धार्मिक भावना से कर रहे हैं । इसमें कोई आर्थिक प्रयोजन नहीं है । इसप्रकार उन्होंने हमारे प्रवचनों के सैकड़ों कैसेट सम्पूर्ण अमेरिका में फैला दिये हैं । हमारे ही नहीं, अन्य लोगों के प्रवचनों को भी वे इसीप्रकार प्रचारित करते रहते हैं । २३ जून को डलास पहुँचे, जहाँ जैन मन्दिर में कुन्दकुन्दशतक के पाठ के उपरान्त उसी की दूसरी व तीसरी गाथा पर प्रवचन हुआ । इसके बाद २४ जून को मियामी पहुँच गये । मियामी में धर्म-प्रचार का सम्पूर्ण कार्य महेन्द्रभाई शाह ही संभालते हैं । इस वर्ष वे बहुत उत्साह में थे । गत वर्ष जब हम उनके घर ठहरे थे, तब उनके छोटे भाई मुकुन्दभाई को कोई आध्यात्मिक रुचि नहीं थी । वे न तो स्वाध्याय ही करते थे और न किसी विद्वान के प्रवचन में ही बैठते थे । अनेक प्रयत्न करने के बाद भी महेन्द्रभाई उन्हें रुचि जागृत करने में सफल नहीं हुए थे; किन्तु हमारे प्रवचन सुनकर हमसे तत्त्वचर्चा करके, प्रश्नोत्तर
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy