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________________ 165 धूम क्रमबद्धपर्याय की अपनी घड़ी पहिचान सकेंगे ? नहीं तो फिर समझ लीजिए कि मेरी घड़ी मिलना कितना दुर्लभ है ? ___ अतः पुलिसवालों से उलझना ठीक नहीं है, वे जो पूछे चुपचाप उत्तर देते जावो, इसी में भलाई है; क्योंकि यदि उन्होंने माँ और बेटे दोनों को ही पुलिस कस्टडी में रख दिया तो क्या होगा ? ____ यह जगत भी पुलिसवालों से कम थोड़े ही है, इससे उलझना भी ठीक नहीं है; जगत के लोग यह भी तो पूछ सकते हैं कि क्या प्रमाण है कि तुम ज्ञानी हो तो क्या ज्ञानीजन फिर इस बात के प्रमाण भी पेश करते फिरेंगे? प्रमाण पेश करने पर उन प्रमाणों की प्रमाणिकता पर संदेह किया जायेगा। अतः ज्ञानीजन इसप्रकार के प्रसंगों में जगत से उलझते नहीं हैं। इसी में सवकी भलाई है । ___क्या वह बालक इस बात की भी घोषणा करता है कि मुझे मेरी माँ मिल गई है । वालक या माँ के खोने पर तो यहाँ-वहाँ तलाश भी की जाती है और समाचारपत्रों में विज्ञापन भी निकाला जाता है, पर मिल जाने पर तो कोई घोषणाएँ नहीं करता, विज्ञापन नहीं निकालता । ___ इसीप्रकार आत्मा की खोज की प्रक्रिया में तो पूछताछ हो सकती है, होती भी है, होना भी चाहिए; पर आत्मा की प्राप्ति हो जाने पर घोषणा की आवश्यकता नहीं होती, विज्ञापन की भी आवश्यकता नहीं होती । खोये हुए लोगों के फोटो तो समाचारपत्रों में छपे देखे हैं, पर मिले हुए लोगों के फोटो तो आज तक नहीं देखे । यदि कोई छपाये तो यही समझा जाता है कि यह तो स्वयं के सम्पन्न होने के प्रचार का हल्कापन है । इसीप्रकार ज्ञानी होने की घोषणाएँ भी सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने की ही वृत्ति है, प्रवृत्ति है । बालक को माँ मिल गई, इतना ही पर्याप्त है, उसे माँ मिलने का यश नहीं चाहिए; इसीप्रकार ज्ञानियों को तो आत्मा की प्राप्ति ही पर्याप्त लगती
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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