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________________ आत्मा ही है शरण 132 सामाजिक एकता के लिए विशाल दृष्टिकोण से कार्य करना होगा और ऐसा समाधान खोजना होगा, जो संबंधित सभी व्यक्तियों को स्वीकार हो सके, अन्यथा एकता संभव नहीं हो सकती । समझौता का रास्ता अत्यन्त आवश्यक और उपयोगी होते हुए भी सहज व सरल नहीं होता; इसमें हमारी बुद्धि, क्षमता, सामाजिक पकड़, धैर्य सभी कसौटी पर चढ़ जाते हैं । फिर भी यदि दोनों पक्ष एक-दूसरे की कठिनाइयाँ समझें और सच्चे दिल से रास्ता खोजें तो मार्ग मिलता ही है । एकबार एकसाथ मिलना-बैठना आरंभ हो जाय तो बहुत-सी समस्याएँ तो अपने-आप समाप्त हो जाती हैं । __एक बात यह भी तो है कि हम और आप ही तो सवकुछ नहीं हैं, आपके साथी-सहयोगी भी हैं और हमारे भी साथी-सहयोगी हैं । जबतक उनसे विचार-विमर्श कर पहल न की जावे तबतक कुछ भी संभव नहीं । इस सब के लिए वातावरण में भी कुछ नरमी तो आनी ही चाहिए । बिना नरमी के जब एक साथ उठना-बैठना ही संभव नहीं है तो एकता का रास्ता कैसे निकल सकता है ? आप जरा अपने पक्ष में नरमी का वातावरण बनाइये, जिससे संवाद की स्थिति बन सके । हम स्वयं इस दिशा में वर्षों से सक्रिय हैं, इस दिशा में हमने अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, अनेक कठिनाइयों के रहते हुए भी उनका सफल क्रियान्वयन भी किया है । हमारे उक्त प्रयत्नों से सभी समाज भली-भाँति परिचित हैं; उनका उल्लेख करना न तो आवश्यक ही है और उचित ही है । यद्यपि हमारे उक्त प्रयत्नों के सुपरिणाम आरहे हैं, तथापि जन-मानस बदलना इतना आसान तो नहीं; सच्ची लगन और निष्ठापूर्वक वर्षों तक इस दिशा में सक्रिय रहने की आवश्यकता है । मुझे विश्वास है कि एक न एक दिन हमारा श्रम सफल होगा ही।
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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