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________________ जीवन-मरण और सुख-दुख हमारी इस सामायिक चेतावनी एवं एकता की अपील को न केवल सभी ने शान्ति से सुना ही, अपितु उसकी गंभीरता को गहराई से अनुभव भी किया। 127 उक्त प्रसंग में सहज ही निकट सम्पर्क होने से भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के अध्यक्ष श्री निर्मलकुमारजी सेठी से दिगम्बर जैन समाज की आज की समस्याओं पर भी थोड़ी-बहुत चर्चा हुई । व्यस्त कार्यक्रमों के कारण समयाभाव होने से विस्तृत चर्चा तो न हो सकी, पर जो भी चर्चा हुई, उसका संक्षिप्त सार इसप्रकार है : दिगम्बर सामान्य औपचारिक बातचीत के उपरान्त मैंने उनसे कहा समाज की शक्ति व्यर्थ के ही विवादों में बर्बाद हो रही है, जब हम श्वेताम्बर भाइयों से इतना समायोजन कर सकते हैं तो थोड़े-बहुत मतभेदों के रहते आपस में भी क्यों नहीं कर सकते हैं ? जितना श्रम, शक्ति, बुद्धि एवं पैसा दिगम्बर समाज आपसी विवादों में बर्बाद कर रही है, यदि वह सब समाज के हित व धर्म के प्रचार में लग जावे तो दिगम्बर समाज का कायाकल्प हो सकता है, उसमें नई चेतना जागृत हो सकती है और वह आज की चुनौतियों को स्वीकार कर विश्व के सामने एक आदर्श उपस्थित कर सकता है । - आज की दुनिया कहाँ जा रही है और हम कहाँ उलझकर रह गये हैं। यदि हम चाहते हैं कि दिगम्बर धर्म का प्रचार-प्रचार देश विदेशों में हो तो हमें इस मुद्दे पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए । मेरी इस भावना की सेठीजी ने भी सराहना की और कहा कि आपने " आचार्य कुन्दकुन्द और दिगम्बर जैन समाज की एकता"" नामक लेख में भी यह अपील की है, मैंने उसे पढ़ा है । १. सम्पादकीय : वीतराग-विज्ञान, जून १९८८
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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