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________________ आत्मा ही है शरण 122 वाले के घड़े को दूसरी जातिवाला छू ले तो लोग उस जल को अपवित्र मानने लगते हैं। कहते हैं - तूने मेरा पानी क्यों छू लिया ? वही गंगा का जल जो सबको पवित्र करता था, घड़ों में भर जाने से स्वयं अछूत हो गया । उसकी दूसरों को पवित्र करने की शक्ति तो समाप्त हो ही गई, वह स्वयं भी दूसरे के छू लेने मात्र से अपवित्र होने लगा । इसीप्रकार सबको पावन कर देनेवाला यह जिनवाणी रूपी गंगा का जल जब सम्प्रदायों के घड़ों में भर जाता है तो उसमें वह क्षमता नहीं रहती कि दूसरों के चित्त को शान्त कर दे, अपितु साम्प्रदायिक उपद्रवों का कारण बनने लगता है; अतः यही श्रेष्ठ है कि गंगाजल गंगा में ही रहे, उसे घड़ों में बन्द न किया जाय । ___ गंगा के ही किनारे रखे गंगाजल से भरे घड़े छुआछूत पैदा करते हैं तो क्या उपाय है इस बुराई से बचने का ? __ भाई, एक ही उपाय है कि उन घड़ों को फोड़ दिया जाय, क्योंकि पानी में तो कोई दोष है नहीं, वह तो वैसा का वैसा ही निर्मल है; दोष तो घड़ों में है । घड़ों के फूटने पर गंगा का पानी गंगा में ही मिल जायगा, गंगा में मिलते ही वह वही पावनता प्राप्त कर लेगा, पावन करने की शक्ति भी प्राप्त कर लेगा, जो उसमें घड़ों में कैद होने के पहले विद्यमान थी । ___ इसीप्रकार सम्प्रदायों में विभक्त जैनत्व, जो आज साम्प्रदायिक सड़ांध पैदा कर रहा है, कलह का कारण बन रहा है। यदि वह उन्मुक्त हो जावे तो अपनी पावनता को तो सहज उपलब्ध कर ही लेगा, अपनी पवित्रता की शक्ति से जैन समाज को ही नहीं, सम्पूर्ण दुनिया को प्रकाशित कर देगा, सुख-शान्ति का मार्ग प्रशस्त कर देगा । - हमने अपने ही अज्ञान से बहुत-सी दीवालें खड़ी कर ली हैं । सम्प्रदायों की दीवालें, जाति की दीवालें, भाषा की दीवालें, प्रान्त की दीवालें; चारों
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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