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________________ 103 जीवन-मरण और सुख-दुख इस वर्ष वाशिंगटन के शिविर में एकदम आध्यात्मिक वातावरण रहा । यह तो आपको विदित ही है कि यहाँ धार्मिक कक्षायें नियमित चलती हैं, जिनकी चर्चा विगत वर्षों में की जा चुकी है । ११ जुलाई, १९८८ को अटलान्टा पहुंचे, जहाँ संतोष कोठारी एवं सरला कोठारी के यहाँ ठहरे, ११ एवं १२ जुलाई को उन्हीं के घर प्रवचन व चर्चा के कार्यक्रम हुए । १३ जुलाई को अश्विनभाई गाँधी के घर प्रवचन व चर्चा के कार्यक्रम रखे गये । अटलान्टा से १४ जुलाई, १९८८ को रालेइध पहुंचे, जहाँ प्रवीणभाई शाह के घर ठहरे । यहाँ १५ जुलाई, १९८८ को हॉल में प्रवचन व चर्चा के कार्यक्रम रखे गये । रालेइध से १६ जुलाई, १९८८, शनिवार को न्यूयार्क आये । वहाँ जैन मन्दिर में प्रातः १० बजे से १२ बजे तक प्रवचन व चर्चा के कार्यक्रम रखे गये । उसी दिन शाम को लन्दन के लिए रवाना हो गये, क्योंकि इसके बाद १० दिन का लन्दन व लिस्टर का कार्यक्रम था । इसप्रकार जैन तत्त्वज्ञान एवं अध्यात्म की गहरी छाप छोड़ते हुए अमरीका की यह यात्रा समाप्त हुई । आचार्य कुन्दकुन्द का द्विसहस्राब्दी वर्ष होने से 'कुन्दकुन्द शतक' पाठ के साथ 'कुन्दकुन्द शतक' की जिन गाथाओं पर एक या दो प्रवचन लगभग सर्वत्र ही हुए, वे गाथाएँ मूलतः इसप्रकार हैं : जो मण्णदि हिंसामि य हिंसिज्जामि य परेहि सत्तेहिं । सो मूढो अण्णाणी गाणी एत्तो दु विवरीदो ॥४६॥ आउक्खयेण मरण जीवाणं जिणवरेहिं पण्णत्त । आउ ण हरेसि तुम कह ते मरणं कद तेसि ॥४७॥ आउक्खयेण मरणं जीवाणं जिणवरेहिं पण्णत्त । आउ ण हरंति तुहं कह ते मरणं कद तेहिं ॥४८॥
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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