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________________ 94 आत्मा ही है शरण इस अवसर पर भगवानजीभाई ने साहित्य की कीमत कम करने के लिए पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट को एक लाख रुपये देने की घोषणा की । १९ जुलाई, रविवार को लिस्टर के नवनिर्मित जैन मन्दिर में प्रवचन व चर्चा का कार्यक्रम रखा गया था । लिस्टर के कार्यक्रम का लाभ लेने के लिए लन्दन से भी एक बस गई थी । इस प्रकार अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड के छव्वीस नगरों में धर्मप्रभावना करते हुए ६३ दिवसीय यात्रा को समाप्त कर २१ जुलाई, १९८७ ई. को लन्दन से चलकर दिल्ली होते हुए २२ जुलाई, १९८७ ई. को जयपुर वापिस आ गये । उक्त सम्पूर्ण विवरण एवं इन यात्राओं में अभिव्यक्त विचारों के सिंहावलोकन के उपरान्त यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि अमेरिका, कनाडा और इंग्लैण्ड में वीतरागी तत्त्वज्ञान के कदम निरन्तर आगे बढ़ रहे हैं, बस आवश्यकता इन प्रयासों को निरन्तरता प्रदान करने की है । इन यात्राओं ने वहाँ आध्यात्मिक रुचि को कितनी गरिमा और गहराई प्रदान की है - यह जानने के लिए शिकागो (अमेरिका) से प्राप्त एक वहिन का पत्र पर्याप्त है, जो इसप्रकार है : "परमपूज्य पंडितजी, १ दिसम्बर, १९८७ ई. मैं शिकागो की रहनेवाली हूँ । जब आप शिकागो आये थे, तब मैंने आपके सभी प्रवचन बड़े ही ध्यान से सुने थे । तभी से महसूस हुआ था कि जितनी आवश्यकता आत्मा के डॉक्टर की है, उतनी शरीर के डॉक्टर की नहीं । आपकी लिखी पुस्तकें मैंने दुवारा बार-बार पढ़ी । उनको पढ़ने से मन को बड़ी शान्ति मिलती है और आत्मशक्ति बढ़ती है । मैंने आपकी 'सत्य की खोज' और 'धर्म के दशलक्षण' पढ़ी । आपकी इन पुस्तकों मे बहुत भारी ज्ञान भरा पड़ा है । ज्ञान तो जैनधर्म के सभी आगमों में भरा पड़ा है, पर आपकी सरल शैली से हम जैसे अज्ञानियों की समझ में जल्दी
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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