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________________ अभागा भरत ] "सम्राट के इस विश्वास को यह अनुचर अपनी अनुपम निधि समझता है, पर पर्यायों के क्रमनियत परिणमन को कौन टाल सकता है ? सम्राट को इस महा सत्य पर भी विचार करना चाहिए। अपने नियतक्रम में घटनेवाली घटनाओं को साक्षीभाव से स्वीकार करना ही दृष्टिवन्त का कर्त्तव्य है ।" " 'श्रद्धास्पद सत्य को स्वीकार करने के लिए राग बाध्य नहीं होता - इस पर्यायगत सत्य को भी तो टाला नहीं जा सकता । निरन्तर प्राप्त होनेवाली भाग्योदय की बधाइयाँ स्वीकार करते-करते अब यह अभागा भरत ऊब गया है । " २७ 44 " रुचि की प्रतिकूलता में सद्भाग्य भी दुर्भाग्यवत् फलते हैं । जिस चक्ररत्न की प्राप्ति को जगत बड़ा भारी भाग्योदय समझता है, जिनध्वनि श्रवण में अन्तरायस्वरूप होने से उसी की उपलब्धि ने आज राजाधिराज को आन्दोलित कर दिया है - यह बात मैं अच्छी तरह जानता हूँ; पर सागर को अपनी गम्भीरता को पहिचानना होगा। इससे अधिक कुछ कहना अनुचर उचित नहीं समझता है, क्योंकि वह अपनी सीमाओं से अपरिचित नहीं है । " " महामात्य की समयोचित सलाह के लिए भरत आभारी है । " (२) दिग्विजय के लिए प्रस्थान के अवसर पर मंगल-तिलकोपरांत जब भरतराजमाता यशस्वती नन्दा के चरणों की वन्दना कर रहे थे; तब उनकी आँखों से प्रवाहित अश्रुधारा ने राजमाता के चरण पखार दिये । मंगल प्रस्थान के अवसर पर प्रवाहित अश्रुधारा में राजमाता को ससम्मान दिग्विजय में कुछ अमंगल प्रतीत हुआ । अपने को सँभालते हुए वे गरजकर बोलीं 46 से 'भरत क्षेत्र के भावी भाग्यविधाता, आद्य चक्रवर्ती सम्राट, नन्दा के दुग्ध पुष्ट, भाग्यशाली ऋषभपुत्र की इस कातरता का कारण राजमाता जानना चाहती हैं; क्योंकि उन्हें यह इष्ट प्रतीत नहीं होती।" -
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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