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________________ प्रातः, मध्यान्ह, सायं और अर्द्धरात्रि के मध्य डेढ़-डेढ़ घण्टे का समय अकाल है । इसी प्रकार दिग्दाह, उल्कापात आदि ऊपर बताये गये दिन भी अकाल हैं । यह व्यवस्था सिद्धांत-ग्रन्थादिकों के लिये बताई गई है, किन्तु आराधना - ग्रंथ, कथा - ग्रंथ या स्तुति - ग्रंथों को अकाल में पढ़ने का निषेध नहीं है । इस काल और अकाल का विशेष वर्णन मूलाचार, अनगार धर्मामृत एवं धवला की नवमी पुस्तक से देख लेना चाहिए । सभी को सुकाल में अध्ययन करना चाहिये और इतर समय में सामायिक, स्तवन, वंदना आदि क्रिया करके पढ़े हुए ग्रंथों का मनन, चिंतवन करना चाहिये । 5. विनयाचार बड़े आदर से शास्त्र को पढ़ना चाहिये । बड़ी भक्ति व आदर के साथ मोक्ष के कारणभूत सम्यग्ज्ञान को यथाशक्ति ग्रहण करना, निरन्तर सम्यग्ज्ञान का अभ्यास करना, उसका स्मरण करना आदि विनयाचार अंग कहलाता है। आचार्यों ने यह भी कहा है कि आलस्य रहित होकर देशकाल और भावों की शुद्धिपूर्वक सम्यग्ज्ञान के प्रति सम्यग्ज्ञान के उपकरण यानी शास्त्र आदि के प्रति और सम्यग्ज्ञान को धारण करने वाल ज्ञानवान् पुरुषों के प्रति भक्ति भाव रखना, उनके अनुकूल आचरण करना, विनयाचार है । श्री वट्टकेर स्वामी ने 'मूलाचार' के पंचाचार अधिकार में कहा है। जिसने विनयपूर्वक शास्त्रों को पढ़ा हो, और प्रमाद से कालांतर में भूल भी जावे, तो भी परभव में शीघ्र याद हो जाता है, थोड़े परिश्रम से याद आ जाता है तथा विनयसहित शास्त्र पढ़ने का फल केवलज्ञान होता है । राजा ने चोर से कहा कि तुझे फाँसी लगने वाली है, अतः 783
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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