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________________ हमने मणि का सागर में डूबो दिया । डूबा हुआ मणि तो पुनः प्राप्त हो सकता है, पर यदि हमने इस समय सम्यग्ज्ञान प्राप्त नहीं किया, तो यह मनुष्य - पर्याय उत्तम कुल और ऐसा पवित्र धर्म फिर नहीं मिलेगा । अतः चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, हमें स्वाध्याय के लिये समय अवश्य निकालना चाहिये | सम्यग्दर्शन के समान सम्यग्ज्ञान के भी आठ अंग होते हैं । ग्रन्थार्थोभयपूर्ण काले विनयेन सोपधानं च । बहूमानेन समन्वित मनिन्हवं ज्ञानमाराध्यम् ।। शब्दाचार, अर्थाचार, उभयाचार, कालाचार, विनयाचार, उपधानाचार, बहूमानाचार और अनिह्नवाचार | सम्यग्ज्ञान मोक्ष मार्ग का द्वितीय रत्न है । पूजा में पढ़ते हैं 2. - . सम्यग्ज्ञान रतन मन भाया आगम तीजा नैन बताया । अक्षर शुद्ध अर्थ पहिचानो, अक्षर अरथ उभय संग जानो ।। जानो सुकाल पठन जिनागम, नाम गुरु न छिपाइये । तप रीति गहि बहू मौन दके, विनय गुण चित्त लाइए | | ये आठ भेद करम उछेदक, ज्ञान- दर्पण देखना | इस ज्ञान ही सों भरत सीझा, और सब पट पेखना । । - इन आठ अंगों सहित सम्यग्ज्ञान की आराधना करने से अज्ञान का नाश होता है, भावों की शुद्धि होती है, कषायों की मंदता होती है, संसार से राग घटता है, वैराग्य बढ़ता है, सम्यक्त्व की निर्मलता होती है, चित्तनिरोध की कला मालूम होती है । 1. शब्दाचार शास्त्र के अक्षर, वाक्य व पदों का शुद्ध उच्चारण करना । जब तक हम ग्रंथ को शुद्ध नहीं पढ़ेंगे, तब तक उसका सही अर्थ नहीं भासेगा । अर्थाचार शब्द का अर्थ ठीक-ठीक समझना । जिन आचार्या - 780
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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