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________________ भगवान क द्वारा बताये गये मोक्ष के मार्ग (रत्नत्रय) पर लगातार बढ़ता जाता है। दूसरे लोग क्या कहेंगे या क्या कर रहे हैं, वह इसकी परवाह नहीं करता । वह जानता है कि दुनिया के लोग तो अज्ञानी, मोही, रागी-द्वेषी हैं | एक भिखारी सुबह-सुबह अपने व्यापार हेतु एक वैज्ञानिक के दरवाजे को खटखटा रहा था। वह ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक था। उसने सोचा आज कोई मरा मित्र आया है, तो दौड़कर दरवाजा खोलता है, तो सामने एक भिखारी भिक्षा पात्र लेकर खड़ा हुआ है। भिखारी को देखते ही उसे क्रोध आ जाता है और आवेश में आकर कहता है कि-तुम कुछ समझते भी हो या नहीं? अभी सुबह के 6 बजे हैं, सुबह से ही दरवाजे पर आ गये, ये भी कोई भीख माँगने का समय है? कम-से-कम समय देखकर भीख माँगा करो। भिखारी यह सुनकर कहता है- "याद रखा, आपकी प्रयोगशाला में, मैं तो जाकर कभी भी ऐसा नहीं कहता कि ऐसा प्रयाग करो, इतने समय करो। जब मैं आपके दैनिक कार्यों में बाधक नहीं बनता तब आप मेर व्यापार में हस्तक्षेप कर सलाह देने वाले कौन हाते हा? विचित्र भिखारी था वह | कह रहा था कि मेरे धन्ध में मुझे सलाह देने-वाले कौन हा तुम? मैं भिखारी हूँ, जब चाहूँगा तब आऊँगा, तब तुम्हें देना पड़ेगा | नहीं देना है तो मना कर दो, लेकिन मेरे व्यापार में तुम्हें सलाह देने का अधिकार नहीं है | उस वैज्ञानिक ने उसी क्षण उस भिखारी के चरण स्पर्श कर लिये | वह वैज्ञानिक आश्यर्च चकित हो कहता है - इतना अद्भुत भिखारी मैंने जीवन में प्रथम बार देखा है, जो कहता है कि मरे धन्धे में तुम्हें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। इसी प्रकार सच्चा साधक (धर्मात्मा ) दूसरों के जीवन में कभी (T
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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