SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 788
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गप्प करने में, गाल बजाने में तो कोई देर नहीं लगती । अन्तस्तत्त्व यह ही तो है । और जब उपयोग में करने बैठो तब पता पड़ता है कि क्या होता है, किस तरह से पार हुआ जाता है, कैसे क्या होता है । एक लड़का था तो उसे शौक हुआ कि हमें तो तालाब में तैरना सीखना है। तो वह गया तालाब में तैरने के लिये, सो डूबने लगा । खैर, किसी ने उसे डूबने से बचा लिया, पर उसके मन में यह बात बनी रही कि हमें तो तैरना सीखना है। तो माँ के पास जाकर बोला- माँ ! मुझे तैरना सिखा दो । तो माँ बोली- अरे बेटा! चला किसी तालाब पर तुम्हें वहाँ तैरना सिखा दूँगी । तो वह लड़का बोला- माँ ! मुझे पानी न छूना पड़े, और तैरना आ जाये । माँ बोली- बेटा! मैं तुझे कितना भी सिखा दूँ कि पानी में ऐसे हाथ चलाना, ऐसे पैर चलाना पर तू जब भी पानी में जायेगा तो डूब जायेगा । पानी न छूना पड़े और तैरना आ जाये, यह कभी सम्भव नहीं । यह तो एक प्रयोगसाध्य बात है। अरे! उसका प्रयोग करें और प्रयोग करने में बहुत सी प्रवृत्तियाँ करनी होंगीं । उन्हीं प्रवृत्तियों को व्यवहार-धर्म कहते हैं । श्री सहजानन्द वर्णी जी ने लिखा है - जिसको आत्मा के सहज अन्तः स्वरूप का परिचय हो गया, उस पुरुष को अन्तस्तत्त्व की दृष्टि करना लीला मात्र है, और जिसको अन्तस्तत्त्वका परिचय न हो, वह कोई सरल पुरुष धर्म के नाम पर भक्ति करे, व्रत करे, तप करे, संयम करे, तो पाप करने वाले से तो भला है ही । हाँ, सम्यक्त्व नहीं है, इसलिये वह मोक्ष मार्ग में नहीं आता । ऐसे जीव को क्या यह कहें कि तू व्रत, संयम छोड़ दे, ये विकार हैं, ये काम के नहीं है, पहले तू सम्यग्दर्शन प्राप्त कर । सम्यग्दर्शन धारण करने चलेंगे तो कर लेगें क्या ? अरे! उन्हें सम्बोधो कि तुम जो कर रहे हो सो ठीक है, मंद कषाय है, सुगति का कारण है, यह धार्मिक वातावरण का एक आधार 773
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy