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________________ श्रद्धा भी न करनी चाहिए, यह बात उसके बनती कि जिसने प्रयोजन भूत तत्त्वों को अनुभव से परख लिया कि यह वास्तविक तत्त्व है, सही स्वरूप में है, उस ही को सर्व आगम के प्रति आस्था होती है । फिर भी अगर युक्तिबल से वस्तु का स्वरूप समझ लिया जाये तो उसकी श्रद्धा और दृढ़ हो जाती है । तो द्रव्यानुयोग का भेद, जो दार्शनिक शास्त्र है, उसका परिचय इस जीव की श्रद्धा की दृढ़ता के लिए है । और अध्यात्मशास्त्र से अपने आपके उपयोग द्वारा अपने आप में परीक्षा करें, परख बनावें । वह तो बहुत ही एक पक्का निर्णय देता है कि वस्तु-स्वरूप ऐसा ही है। देखो, सुनी बात सही होती कि झूठ ? सही कम होती है झूठ ज्यादा होती है और सुनी बात से देखी हुई बात सच होती कि नहीं ? सच होती, मगर कभी-कभी देखी हुई बात भी झूठ होती है, किन्तु अनुभव में आयी हुई बात सही है, उसे कोई नहीं डिगा सकता । सुनी हुई बात तो झूठ हो सकती है । बात कुछ हो, सुनाई कुछ गई । उसने दूसरे को सुनाया, तो कुछ और बढ़ाकर सुनाया । उसने सुनाया, तो और बढ़ाकर सुनाया। ऐसे ही अलग-अलग कानों में बात गई, तो वह झूठ बढ़ती चली जाती है। सुनी हुई बात का कोई विश्वास भी नहीं मानता। कहते हैं न, अरे ! तुम्हारी सुनी हुई बात है कि देखी हुई बात है ? तब वह कहता है कि, भाई ! देखी हुई तो नहीं है, सुनी जरूर है । तो उसे सुनकर ही वह अप्रमाण बता देता है । अच्छा यह बताओ • देखी हुई बात क्या हमेशा सच होती है, या झूठ भी निकलती है ? जरा एक दो कथानकों से देखो कि देखी हुई बात कैसे झूठ होती है। कोई पुरुष अपना एक तीन वर्ष का बालक छोड़कर बाहर धन कमाने के लिए चला गया । और 13 - 14 साल बाद में आया और 770
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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