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________________ समान है। इस जीव के उद्धार का तथा कष्टों से मुक्त होने का मूल उपाय आगम ज्ञान ही है। अतः आगम के अध्ययन में हमें अपना अधिक-से-अधिक समय देना चाहिये । जिसने आगम का ज्ञान नहीं किया वह मदिरा पायी की तरह बाह्य पदार्थों में डोलता रहता है। शरीरादिक पर-पदार्थों और रागद्वेषादिरूप परभावों को अपना मानता हुआ स्व-पर विवेक से रहित हो, संसार में ही घूमता है। और जो जिनवाणी का अध्ययन करता है, वह स्वानुभव प्राप्त करक आत्म प्रगति करता है। जिनवाणी के चारों अनुयोगों में जो कुछ वर्णन है, वह ज्ञान और वैराग्य को पोषण करने वाला है। हमें चारो अनुयोगों का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिये । प्रथमानुयोग को पढ़े तो वहाँ भी हित प्रकाश मिलता है। 63 शलाका पुरुषों की उत्पत्ति, प्रवृत्ति, धर्मतीर्थ का प्रवर्तन आदि प्रथमानुयोग से ही जानते हैं। उनके वैराग्य का चरित्र आता है, तो उसको सुनकर हमें भी ज्ञान-वैराग्य की प्रेरणा मिलती है | पुण्य-पाप का बोध होता है। इन ग्रन्थों में प्राथमिक-जनों को धर्म की ओर आकर्षित करने का अभिप्राय छिपा है, इसलिये इनमें शृंगाररस आदि का भी प्रयोग किया गया है। जिस प्रकार बताशे में रखकर कड़वी औषधि बालक को खिला दी जाती है, उसी प्रकार सुन्दर-सुन्दर कथाओं तथा श्रृंगार आदि रसों के कथन के साथ बीच-बीच में यथास्थान जीवनोपयोगी बातों का व तत्त्वों का निरूपण भी कर दिया गया है। अतः प्रथमानुयोग में चारों ही अनुयोगों सम्बन्धी बातों का सुन्दर व संक्षिप्त वर्णन मिलता है | करणानुयोग के ग्रन्थों को पढ़ने से तीन लाक का परिचय होता है। अपने पाप भावों द्वारा उपार्जित नारकियों के दुःखो का वर्णन (742
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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