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________________ मन की एकाग्रता होती है | मन मदोन्मत्त हाथी के समान है। उसको रोकने के लिये स्वाध्याय रूपी जंजीर ही एक उपाय है। जिसने स्वाध्याय से मन को स्थिर करन का अभ्यास किया है, उसी का चित्त स्थिरता को प्राप्त होता है। चित्त की एकाग्रता के कारण ध्यान की सिद्धि होती है और ध्यान से कर्मा का क्षय होकर मोक्ष पद प्राप्त होता है। स्वाध्याय सदा अत्यन्त विनय पूर्वक करना चाहिये । विनय पूर्वक प्राप्त किया गया ज्ञान ही फलदायक होता है | स्वाध्याय का प्रयाजन तो मान की हानि करना है, पर यदि किसी को ज्ञान का मद हो जाता है तो वह ज्ञान कार्यकारी नहीं होता। 'ले दीपक कुँए पड़े होने वाली कहावत आती है कि उस दीपक के प्रकाश की क्या उपयोगिता जिसे हाथ में लेकर भी यदि काई कुँए में गिर जाता है। धर्मनगर का राजा यम बड़ा विद्वान था, पर उसे अपने ज्ञान का बहुत घमण्ड था। एक बार धर्म नगर में सुधर्माचार्य 500 मुनियों के साथ आये और नगर के बाहर उद्यान में ठहर गये | अपनी विद्वत्ता के गर्व स गर्वित राजा यम समस्त परिजन और पुरजनों के साथ, मुनियों की निन्दा करता हुआ उनक पास जा रहा था, किन्तु गुरु निन्दा और ज्ञानमद के कारण मार्ग में ही उसका सम्पूर्ण ज्ञान लुप्त हो गया और वह महामूर्ख बन गया । इस असहनीय घटना से राजा बहुत दुःखी हुआ और उसने अपने पुत्र गर्दभ को राज्य का भार देकर अपने अन्य 500 पुत्रों के साथ दीक्षा ले ली। पर दीक्षा लेने के बाद भी मूर्ख ही रहे। णमोकार मंत्र का उच्चारण भी व नहीं कर सकते थे। इस दुःख से दुःखित हाकर यम मुनिराज गुरु से आज्ञा लेकर तीर्थ यात्रा को चल दिये। मार्ग में उन्होंने गर्दभ युक्त रथ, गेंद खेलते हुये बालक और
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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