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________________ सेठ जी पुनः सोमशर्मा के घर आये और ब्राह्मणी से पूछा - हे माँ ! मेरे द्वारा इतना बड़ा अपराध होने पर भी तुम्हें क्रोध क्यों नहीं आया? ब्राह्मणी ने कहा - सेठ जी ! क्रोध का फल जैसा मिलना चाहिये, वैसा मैं भोग चुकी हूँ, इसलिये क्रोध के नाम से ही मेरा जी काँप उठता है । सेठ की जिज्ञासा देखकर वह बोली- सेठ जी ! सुनिये। चंदनपुर में एक शिवशर्मा ब्राह्मण रहता है । वह बहुत ही धनवान् है और राजा का आदर - पात्र है । उसकी भार्या का नाम कमलश्री है। उनके आठ पुत्र और एक पुत्री हुई । पुत्री का नाम भट्टा रखा, सो मैं ही हूँ । बहुत ही सुन्दर थी, पर मुझ में एक अवगुण था कि मैं अत्यन्त घमंडी थी और बोलने में बहुत तेज थी इसलिये सभी लोग मुझसे डरते थे और किसी को मुझे तूं कहने की हिम्मत नहीं पड़ती थी । यदि कदाचित् कोई मुझे नूँ कहकर पुकार दे तो मैं लड़ झगड़कर उसकी सौ पीड़ियों तक को गालियाँ दे डालती थी, जिससे भयंकर तूफान खड़ा हो जाता। इसक विपरीत मेरे पिताजी लड़ाई-झगड़े से बहुत डरते थे तथा राजा के द्वारा बहुत सम्मान मिलते रहने से वे निर्भीक भी थे । अतः एक बार उन्होंने शहर में यह ढिंढोरा पिटवा दिया कि कोई भी मेरी बेटी को तूं कहकर न पुकारे | पिताजी ने तो अच्छा ही किया था, किन्तु मेरे दुर्भाग्य से वह उल्टा हो गया । निषेध में आकर्षण होता है । उस दिन से मेरा नाम ही तुकारी पड़ गया और सभी लोग मुझे इस नाम से चिढ़ाने लगे । मैं चिढ़ती, लड़ती, झगड़ती और लोगों को गालियाँ देने लगती थी युवावस्था आने पर नतीजा यह निकला कि कोई भी मेरे से विवाह करने को तैयार नहीं हुआ। बहुत दिन बाद मेरे भाग्य से इन 57
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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