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________________ जहाँ स्त्रियों के चित्र लगे हों, वहाँ नहीं रहना चाहिये । "ब्रह्मचारी सदा शुचिः " आत्मा में पवित्रता ब्रह्मचर्य गुण से आती हैं । ब्रह्मचारी की आत्मा में महान् बल का विकास होता है, उसके मुख पर तेज चमकता है, उसकी वाणी में प्रभाव होता है, उसका शरीर बलिष्ठ और निरोग होता है, उसकी बुद्धि विकसित हो जाती है । उसमें अनेक अध्यात्मिक गुण प्रकट होने लगते हैं। 8. ब्रह्मचर्य की साधना के लिये मन की शुद्धि, मन की पवित्रता अनिवार्य है । एक स्वच्छ वस्त्र पर ही भली प्रकार रंग चढ़ सकता है । इसी प्रकार निर्मल मन में ही ब्रह्मचर्य धर्म का रंग चढ़ सकता I जिसका मन पवित्र हो गया, उसका जीवन भी पवित्र हो जायेगा और जिसका मन अपवित्र हो जायेगा, उसका जीवन भी अपवित्र हो जायेगा । इसीलिये कहा है मनेः मनुष्यानां कारणं बन्ध मोक्षो । बन्ध व मुक्ति का मूल कारण मन है । यह आत्मा केवल भाव स्वरूप है । किसी ने अब तक गंदे भाव किये हों, यदि भाव पलट जायें और आत्म स्वरूप की दृष्टि जग जाये तो उसके जीवन ब्रह्मचर्य प्रगट हो जायेगा। जिसका हृदय पवित्र होता है, जो अपने व्रत मे दृढ़ रहता है, उसके प्रभाव से दूसरो का मन भी पवित्र हो जाता है । — एक बार एक राजा अपने नगर में घूम रहा था। उसने एक सेठ की बहू को देखा, तो उसकी सुन्दरता देखकर वह उस पर मोहित हो गया। महल में जाकर उसने अपने मंत्री से अपने मन की बात बताई। मंत्री बोला राजन् आप उसका ख्याल छोड़ दीजिये, वह पतिव्रता स्त्री है। इस समय उसके पति विदेश गये हुये हैं । वह अपने पति या साधु महात्मा के अलावा अन्य पर पुरुष से नहीं मिलती। राजा ने निर्णय किया कि वह साधु वेष में उसके घर 673
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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