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________________ है । इतिहास इस बात का साक्षी है कि प्राचीन काल में ऐसे-ऐसे महापुरुष हो चुके हैं, जिनकी प्रशंसा किसी प्रकार शब्दों से नहीं की जा सकती है। उनकी मनोजयता साधुओं से भी अधिक थी। उन्होंने देवांगनाओं के समान अपनी सुन्दर पत्नियों के साथ रहते हुये भी असिधारा व्रत का अखण्ड रूप से पालन किया। उन्होंने अपने मन से भी ब्रह्मचर्य का खंडन नहीं किया था। क्या कभी ऐसा हो सकता है। कि विवाह एक के साथ नहीं अनेकों के साथ कर फिर भी अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे ? पद्मपुराण में राम के भाई भरत के कई पूर्व भवों का वर्णन आया है। उनमें से एक भव का वर्णन करते हुये बताया है कि पूर्व भव में भरत अचल नामक चक्रवर्ती के "अभिराम " नामक पुत्र थे । उसन बाल्यावस्था में ही एक दिन मुनिराज के उपदेश को सुन वैराग्य से ओत-प्रोत हो पिताजी से दीक्षा लेने की आज्ञा माँगी । पिता चक्रवर्ती बोले- "मैं चक्रवर्ती पद के योग्य नाना ऐश्वर्य और भोगो को भागूँ और तू चक्रवर्ती का पुत्र होकर नग्न रहे, सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास आदि कष्टों को सह, ऐसा कभी नहीं हो सकता । तुम घर में ही रहो और गृहस्थ धर्म का पालन करो। अभिराम ने बार-बार दीक्षा लेने का आग्रह किया लेकिन पिता ने मोहवश उसे दीक्षा लेने की आज्ञा नहीं दी और यह सोचकर कि यह दीक्षा न ले ले, इसलिये शीघ्र ही सुन्दर देव कन्याओं के समान रूपवान तीन हजार कन्याओं के साथ राजकुमार अभिराम का विवाह कर दिया। उन कन्याओं ने नाना प्रकार की चेष्टाओं से कुमार को मोहित करना चाहा, परन्तु महाशीलवान कुमार को ये सब चेष्टायें और विषय - सुख विष के समान लगते थे। वह मन में विचार करता था, पिताजी ने मुझे तीन हजार बेड़ियों के बन्धन में 669
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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