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________________ भी, सहवास का प्राप्त नहीं किया और साथ ही सास आदि क तानां को भी सहन करती रही, लेकिन उसने कभी भी पवनंजय को छोड़कर हृदय में किसी अन्य को नहीं चाहा था और न ही कभी पवनंजय को हीन दृष्टि से देखा | वह शीलवती, सास और पति के द्वारा तिरस्कृत किये जाने पर भी, यहाँ तक कि युद्ध में जाते समय जब अंजना पवनंजय की आरती करने गयी तब वह (पवनंजय) उसे लात मारकर चला गया, फिर भी अंजना ने बुरा नहीं माना। उसने सोचा कि आज तो मेरा बड़ा भाग्य है कि पति के चरणों का स्पर्श मुझे मिला। इस घटना को देखकर वसन्त माला बाली - देखो अंजना! पवनंजय कितने निष्ठुर हैं। वे नारी क कामल हृदय को नहीं पहचान पाये | अंजना उसी समय वसन्त माला को फटकारती और कहती है, सखी! तुमने आज तक मुझसे प्रेमभरी बात ही कही, लेकिन आज तुमने मुझे इतने कठोर, मर्मभेदी वचन क्यों कहे? आज क बाद यदि ऐस वचन भूल से भी कह दिय ता फिर तरे लिये मेरे समान कोई बुरा नही होगा। यह था उसका पतिव्रत धर्म, यह था उसका शीलव्रत। इसी शील के प्रभाव से युद्ध में जाते समय जब उन्हे पता चला अंजना निर्दोष है, तो वे रातो-रात ही लौट आये और अंजना से मिलकर वापिस युद्ध करने चले गये । अंजना के गर्भ में हनुमान जी आ गये, पर सास को विश्वास नही हुआ और उसे कुल कलंकनी मानकर घर से निकाल दिया। युद्ध में पवनंजय शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लौटे, पर घर में अंजना को न पाकर वे उसके लिये वन-वन भटकते रहे, वृक्ष-वृक्ष से पूंछते रहे तथा पागलों की भांति खाना, पीना, सोना सब भूल गये | यह सब ब्रह्मचर्य व्रत की महिमा है। (663)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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