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________________ हजारों वर्षों की तपस्या नष्ट कर दी । तो जो निरन्तर स्त्रियों के रूप को निहारते हैं, उनकी दशा का वर्णन कौन कर सकता हैं? कोई नहीं कर सकता। अपने शील ब्रत की रक्षा के लिये किसी भी स्त्री पर राग पूर्वक दृष्टि नहीं डालनी चाहिये | जो बुद्धिमान शीलवान होते हैं, वे पर स्त्री या स्त्री मात्र पर कभी दृष्टि नहीं डालते हैं । मुनिराजों को भी गोचरी वृत्ति से आहार लेने को कहा गया है । गोचरी का अर्थ होता है तुम आहार के लिये जाते समय गाय के समान आचरण करना । जिस प्रकार गाय घास आदि लाने वाली महिला के वस्त्र, आभूषण, रंग, रूप आदि को नहीं देखती, मात्र घास से ही प्रयोजन रखती है, उसी प्रकार तुम भी आहार देने वाली स्त्री को मत देखना, मात्र आहार से ही प्रयोजन रखना । श्रेणिक चरित्र में एक कथा आती है । उसका सार यह है कि आहार करते समय आहार देने वाली स्त्री के हाथ से एक ग्रास नीचे गिर गया। ग्रास के नीचे गिरते ही मुनिराज की दृष्टि नीचे गई और स्त्री के पैर का अंगूठा दिख गया, अँगूठे के दिखते ही मुनिराज को गृहस्थ अवस्था की स्त्री का स्मरण हो आया, जिससे उनकी मनोगुप्ति समाप्त हो गई । श्रावस्ती नगरी के राजा द्वीपायन का दूसरा नाम गौरसंदीप था । एक दिन वह राजा वनक्रीड़ा के लिये जा रहा था । रास्ते में एक आम्रवृक्ष को मंजरी से भरा देख उसने एक मंजरी को कौतुकवश तोड़ लिया और आगे निकल गया। पीछे से आने वाले जनसमुदाय ने राजा का अनुसरण करते हुये आम्रवृक्ष की एक एक मंजरी तोड़ी, पुनः पत्ते तथा डालियाँ नष्ट कर दीं । राजा वन क्रीड़ा कर लौटा तो उस 656
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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