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________________ सुनकर, स्त्रियाँ उसमें आसक्त हो जाती हैं । महारानी अमृतमती ने इसी प्रकार का कार्य किया था । उसने पर पुरुष में आसक्त हो अपने पति का मार्ग का काँटा समझकर उसे गला घोंट कर मार दिया था । यशोधर महाराज की महरानी अमृतमती अपने पति की प्राण प्यारी थी । विशाल साम्राज्य की स्वामिनी थी । यशोधर महाराज उसके प्रेम में पागल थे । वह सदैव सैकड़ों दासियों से घिरी (सुरक्षित) रहती थी । फिर भी वह एक दिन महावत द्वारा गाये गये गीत के मधुर स्वर को सुनकर उस पर आसक्त हो गई। जिस महावतके आठों अंग विकृत थे, जो हाथियों के खाने से बची घास के बिछौने पर सोता था, अन्य महावतों की जूठन का भोजन करता था, रस्सी से बना जिसका तकिया था और अधजले वृक्ष के समान जिसका शरीर था। उस 'अष्टावक्र' नाम के महावत के पास वह अमृतमती उसके मधुर स्वर से आसक्त हुई रात्रि में जाती थी, और जिस दिन पहुँचने में कुछ देर हो जाती तब अष्टावक्र एक हाथ से उसके केशों को पकड़कर खींचता हुआ दूसरे हाथ से हाथी के अंकुश की निष्ठुरता पूर्वक मार लगाता था । उससे बचने के लिये वह दीन शब्दों में प्रार्थना करती थी । "हे प्राणनाथ ! प्रभो!" मैं क्या करूँ। मेरा भाग्य ही ऐसा खराब था, जिससे मेरा विवाह आपके साथ न होकर उस निकम्मे राजा के साथ हो गया । हे नाथ! मुझे क्षमा कर दो। इसमें मेरा कोई अपराध नहीं है, क्योंकि जब तक राजा सो नहीं जाता, तब तक मैं वहीं आपके पास आने के लिये आपके गुणों का स्मरण करती रहती हूँ । मूर्ख अमृतमती, अत्यन्त सुन्दर, ऐश्वर्यशाली, कर्तव्य पालन में तत्पर, पापाचार से दूर रहने वाले सम्राट के समान यशोधर महाराज को छोड़कर एक नीच कुलोत्पन्न पापी कुरूप महावत पर आसक्त हुई थी । 650
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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