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________________ एक दिन मुनि भावदेव अपने गुरु भवदेव से अपनी जन्मभूमि की ओर विहार की आज्ञा लेकर विहार करते हुये और अपने मन में नागला के साथ गृहस्थी बसाने का विचार करते हुए अपनी जन्मभूमि के बाहर स्थित बगीचे में आये । वहाँ जिन चैत्यालय में गये, जहाँ धर्म - गोष्ठी करने वाली अनेक महिलाओं को देखा, जो परस्पर धर्मचर्चा कर रही थीं । उन्होंने एक स्त्री ( नागला ) से नागला नामक स्त्री के बारे में पूछा तो नागला समझ गयी कि ये पूर्व में (मुनि बनने के पहले) मेरे पति थे, और इनको दीक्षा लेने के बाद भी मेरी चिन्ता अभी तक सता रही है । इसलिये मै इनका निश्चित रूप से धर्म में स्थितिकरण करूँगी । इसी विचार से अनेक युक्तियों से स्वयं नागला ने मुनि भावदेव को समझाया और उनका स्थितिकरण किया । जिससे पुनः वन में गुरु के निकट जाकर प्रायश्चित्त लेकर आत्मकल्याण में संलग्न हो गये । अतः अपने मन का पवित्र बनाने व वासना से बचाये रखने के लिये स्त्री आदि का चिन्तन नहीं करना चाहिये । 3. कुशील व्यक्तियों की संगति करने से - ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये दुराचारी व्यसनी पुरुषों की संगति कभी नहीं करनी चाहिये । बहुत काल का दृढ़ब्रती पुरुष भी परस्त्रीगामी अथवा वेश्यागामी, व्यभिचारी पुरुषों का संयोग पाकर अपने व्रत को दूषित या नष्ट कर लेता है । चम्पापुरी के प्रसिद्ध सेठ भानुदत्त की सेठानी सुभद्रा के चारुदत्त नामक इकलौता पुत्र था । चारुदत्त बचपन से ही मन लगाकर अध्ययन करता था। शास्त्रों के अध्ययन, मनन, चिन्तन से वह अल्पायु मे ही संसार, शरीर और भोगों से इतना विरक्त हो गया कि विवाह करने मात्र को जीवन की बरबादी और बंधन ही मानने लगा । 644
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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