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________________ दुकान खोलने के उपरांत आप एक, दो, तीन दिन अवश्य रुक जायें, पर फिर सोचते हैं कि-ग्राहक क्यों नही आ रह, क्या मामला है ? धीरे-धीरे विज्ञापन बढ़ाना प्रारम्भ कर देते हैं, बोर्ड पर लिखवाते हैं, अखबारों मे निकलवाते हैं कि घूमते-घूमते कोई आवे तो सही । अर्थ यह है कि इतना परिश्रम करके जिस उद्देश्य से दुकान खोली है, उसका तो कम-से-कम ध्यान रखना चाहिये । तो भगवान की पूजा हम क्यों कर रहे हैं - यह भी तो ध्यान रखना चाहिये । यदि आप लोगों का भगवान बनने का संकल्प नहीं है तो फिर भगवान की पूजा क्यों कर रहे हैं? हमें भगवान थोड़ बनाना है, हम तो श्रीमान् बनने के लिये पूजा कर रहे हैं । श्रीमान् बनने के लिये पूजा कर रहे हैं, तभी आप टटोलते रहते हैं कि पूजा तो कर रहा हूँ, पर बन नहीं रहा हूँ । लगता है कि वहाँ से ध्वनि निकल रही है बन जायेगा । ध्वनि, अपने मन के अनुरूप ही निकलती है, ध्यान रखना । ध्वनि नहीं निकलती है । पर मन में है कि कब साहूकार बन जाऊँगा? तो ध्वनि निकलेगी कि बन जायेगा । धार्मिक क्रियाओं के माध्यम से आप अभी तक साहूकार बनने में ही लगे हैं। परिश्रम इसी में समाप्त हो रहा है । यह परिश्रम कितने भी दिन करते रहो, जड़ की उपलब्धि हो सकती है, सम्पत्ति की उपलब्धि हो सकती है, पर भगवान बनने की उपलब्धि इस दृष्टिकोण से नहीं हो सकती है । हम जैसे-जैसे क्रियाओं के माध्यम से राग-द्वेषां को संकीर्ण करते चले जायेंगे, संकीर्ण बनाते चले जायेंगे, वैसे-वैसे अपनी आत्मा के पास पहुँचते जायेंगे | यह प्रक्रिया ही ऐसी है, इसके बिना कोई भगवान हो ही नहीं सकता। अपनी आत्मा में लीन हो जाना ही ब्रह्मचर्य है और यही एक मात्र भगवान बनने का उपाय है । देव - शास्त्र - गुरु के माध्यम से जिस व्यक्ति ने अपने आपके 635
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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