SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 647
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेंगे, तब तक बार-बार इस संसार में जन्म लेते रहेंगे। जीवन क रहते हुए यदि मृत्यु का बोध स्पष्ट हो जाए, तो अमरत्व को पाना संभव है। हर क्षण मृत्यु का स्मरण करने से मृत्यु-बोध हमारे जीवन में अंकुरित हो सकता है। जैस चौगाने में लकड़ियों के सहारे बंधी रस्सी पर नट नाचता है, ढोल की आवाज के साथ अपने पाँव बढ़ाता है और अलग-अलग करतब भी दिखाता है। उस समय चारों आर से लोग उसकी प्रशंसा करते हैं और तालियाँ बजाते हैं और पैस फेकत हैं। इतना कुछ होत हुए भी उसका मन सिर्फ रस्सी पर ही लगा हुआ है, क्योंकि वह जानता है तनिक सी असावधानी मृत्यु को निमंत्रित करेगी। इस बात का सतत् ध्यान रहे कि मृत्यु प्रतिपल हमारे सामने खड़ी है, तो जीवन का रूप बदलते देर नहीं लगेगी। किसी शायर की पंक्तियों में इस सत्य को उजागर किया गया है जब तक मौत नजर नहीं आती। तब तक जिन्दगी राह पर नहीं आती ।। महाराष्ट्र के एक महान संत हुए हैं - रामदास | वे हर घड़ी शुभध्यान और प्रभु-चर्चा में लीन रहते थे | मानव मात्र को उत्कर्ष का मार्ग समझाते थे और उस पर चलने की प्रेरणा देते थे। एक दिन एक जिज्ञासु उनके चरणों में आया और बोला-महाराज! आप बड़े महान हैं, कितनी अच्छी और सच्ची धर्म की बातें सुनाते हैं। अतः मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि क्या आपक मन में कभी कोई विकार नहीं आता? संत रामदास ने उसकी जिज्ञासा को जानकर गंभीरता पूर्वक कहा-सुना, भाई! तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर ता मैं बाद में दूंगा, 632
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy