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________________ कोई संदेह नहीं । शील वानों के लिये संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है । जिसने अपने ब्रह्म स्वरूप को पहचान लिया, उसका मनोबल जागृत हो जाता है। वह अपने मन व इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेता है । राजा का एक हाथी था, जिसे राजा बहुत प्रेम किया करता था । सारी प्रजा का भी वह प्रियपात्र था । उसकी प्रिय पात्रता का कारण उसमें अनेक गुण थे । वह बुद्धिमान एवं स्वामीभक्त था । अपने जीवन में उसने बड़ी यशोगाथा प्राप्त की थी । अनेक युद्धों में अपनी वीरता दिखाकर उसने राजा को विजयी बनाया था। अब वह हाथी धीरे-धीरे बूढ़ा हो गया था । उसका सारा शरीर शिथिल हो गया, जिससे वह युद्ध में जाने लायक नहीं रहा । वह एक दिन तालाब पर पानी पीने गया । तालाब में पानी कम होने से हाथी तालाब के मध्य में पहुँच गया । पानी के साथ तालाब के बीच कीचड़ भी खूब था । हाथी उस कीचड़ के दल-दल में फँस गया । वह अपने शिथिल शरीर को कीचड़ से निकाल पाने में असमर्थ था । वह बहुत घबराया और जोर-जोर से चिंघाड़ने लगा । उसकी चिंघाड़ सुनकर सारे महावत दौड़े। उसकी दयनीय स्थिति देखकर सोच में पड़े कि इतने विशालकाय हाथी को कैसे निकाला जाय । आखिर उन्होंने बड़े-बड़े भाले भौंके, जिसकी चुभन से वह अपनी शक्ति को इकट्ठी करके बाहर निकल जाय? परन्तु उन भालों ने उसके शरीर को और भी पीड़ा पहुँचाई, जिससे उसकी आँखों से आँसू बहने लगे | जब यह समाचार राजमहल में राजा के कानों में पड़े तो वे भी शीघ्र गति से वहाँ पहुँचे । अपने प्रिय हाथी को ऐसी हाल में देखकर 630
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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