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________________ ब्रह्मचर्य व्रत एक दुर्धर व्रत है | इस सामान्य मनुष्य धारण नहीं कर सकता। वास्तव में ब्रह्मचर्य व्रत के धारी ही सच्चे वीर हैं। भर्तृहरि ने अपने एक श्लोक में कहा है - मत्तेय- कुम्भदलने भुवि सन्ति शूराः । के चित्प्रचण्ड मृगराज वधेपि दक्षाः ।। किन्तु ब्रवीमि वलिनां पुरतः प्रसह्मः । कंदर्प दर्प द लने विरला मनुष्याः ।। अर्थात् इस संसार में ऐस शूर हैं, जो मत्त हाथियों के भस्थल के दलन करने में समर्थ हैं, कितने ही शूरवीर एसे हैं जो मृगराज अर्थात् सिंह के वध करने में दक्ष हैं, किन्तु भर्तृहरि उन बली व्यक्तियों से कहते हैं कि कामदेव का दलन करने वाले मनुष्य विरले ही होते हैं। जिसने कंदर्प के दर्प को दलन कर दिया, उसने अपना संसार मिटा दिया। भगवान पार्श्वनाथ जब सर्व प्रकार क आरम्भ और परिग्रह का त्याग करके, दिगम्बर दीक्षा को धारण कर, एकवट वृक्ष के नीचे पत्थर की शिला पर ध्यानरूढ़ हो गये, उसके कुछ समय पश्चात की घटना है - रति और कामदेव प्रकृति की सुन्दरता देखने के लिये अपने महल से जगत् की ओर जा रहे थे। रास्ते में कामदेव कहते हैं कि विश्व में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसे मैंने नहीं जीता हो। रति ने कहा – यह सत्य नहीं है | कामदेव बोला-तुम किसी को बता दो जो मेरे वश में नहीं हो। थोड़ी देर बाद जिस वन में श्री 1008 भगवान पार्श्वनाथ ध्यानस्थ थे, वहाँ घूमते हुये रति और कामदेव आ पहुँचे । (612)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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