SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 603
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में विचार आया-"मेरा इस संसार में कुछ नहीं है, देख लिया सब स्वार्थ के कारण हैं और इसीलिये मुझे अग्नि परीक्षा में धकेल दिया, केवल अपने मान के कारण अग्नि में डाल दिया, मेरा कोई नहीं है संसार में, इस प्रकार का विचार सीता के मन में आया ।“ अग्नि परीक्षा के बाद, राम ने बहुत निवेदन किया कि देवी चलिये राजमहल में चलिये | सीता बोली - नहीं अब मैं राजमहल में नहीं, अब तो मोक्ष महल में जाऊंगी, उन्हें बहुत समझाया, नगरवासियों ने माफी माँगी कि देवी हमें माफ कर दो, सीता ने कहा सब का क्षमा है। ___ वे विचार करती हैं कि पूर्व में मैंने ऐसा कुछ पाप किया होगा, जिसके कारण से मेरे लिये ऐसा-ऐसा भोगना पड़ा। अब मैं इस संसार में फँसना नहीं चाहती हूँ , अब तो मैं, अपना कल्याण करूंगी और आर्यिका माताजी के पास पहुंच गई और वहाँ पर जाकर आर्यिका दीक्षा को धारण कर, घोर तपश्चरण किया और तप के प्रभाव से 16 वें स्वर्ग में देव हो जाती हैं, प्रतीन्द्र हा जाती हैं। स्त्री लिंग का छेद कर क देव बन जाती हैं। इसलिये आकिंचन्य धर्म सामान्य धर्म नहीं है, थोड़ा-सा भी आकिंचन्य धर्म आपके अन्दर आता है तो यह स्वर्ग और माक्ष को देने वाला है। थोड़ा-सा भी आप इसका अनुभव करते हो कि संसार में मेरा कुछ नहीं है, आप बार-बार इसका विचार करो, सुबह स उठके आपको चितवन करना चाहिये, आप कहाँ से आये हैं? आपको कहाँ जाना है? कौन आपका साथ देगा? जिस समय आप बीमार हो जाते हैं, क्या आपकी थोड़ी-सी बीमारी भी कोई ग्रहण कर पाता है? नहीं कर पाता है। फिर ये ममत्व के परिणाम कहाँ से आ रहे हैं? यह तुम्हारा मोह है। मोह महामद पिया अनादि, भूल आपको भरमत वादि (588)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy