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________________ जान लो, अपने ज्ञान को प्राप्त कर लो, संसार में परमाणु के बराबर भी तुम्हारा कुछ नहीं है, कुछ भी तुम्हारे साथ जाने वाला नहीं है | ___भर्तृहरि और शुभचन्द्र दोनों साधु हो गये | एक तो जटा-जूट लगा करके साधु बन जाते हैं और एक दिगम्बर साधु हो जाते हैं। भर्तृहरि ने 12 वर्ष तक घोर तपस्या की और घोर तपस्या करने के बाद 12 वर्ष में एक ऐसा रसायन तैयार किया, जिस रसायन को अगर लोहे पर डाल दिया जाये तो सारा-का-सारा लाहा साना हो जाता था। चार घड़े उन्होंने रसायन के तैयार कर लिये, एक बूंद अगर जिस लोहे पर डाल दी जाये तो सारा-का-सारा लोहा सोना हो जाता था | भर्तृहरि सोच रहे थे, मैंने बहुत अच्छा काम कर लिया | एक दिन मालूम पड़ा, सेवकों ने आकर के भर्तृहरि से कहा कि हे महाराज, फलाने-फलाने वन में एक नग्न कोई महाराज बैठे हुये हैं, उनकी काया क्षीण हो रही है पर मुख अत्यंत प्रकाशमान हो रहा है। भर्तृहरि का ज्ञात हुआ, कहीं वो मेरा भाई न हो, क्योंकि वो ऐसे ही थे, और यह सोचकर उन्होंने सेवकों से कहा कि जाओ तुम एक बार फिर से उन्हें देखकर के आओ, क्या वा ऐसे-ऐसे हैं | सेवक गये और फिर से देखकर के आय और बोले महाराज वो एसे ही हैं, जंगल में बैठे हैं, उनकी न कोई कुटीर है, न काई घर है, न कोई सेवक उनके पास है, न कुछ खाने के लिये उनके पास है, काया बिल्कुल क्षीण हो रही है, न उनके पास पहनने के लिये कपड़े हैं | इत्यादि वृतान्त सुनकर भर्तृहरि ने विचारा कि आ-हो मरा भाई इतना दरिद्री हा गया है। सेवक से कहा-जाओ वो मेरा भाई है, उसके लिये एक घड़ा रसायन भिजवा दिया जाये, ताकि वो अपनी दरिद्रता को दूर कर ले | सेवक उस घड़े को दिगम्बर मुनि के लिये भेंट करने हेतु ले गये, और मुनि महाराज को विनम्रता पूर्वक 579)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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