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________________ वो चले गये, वो जहाँ पर भी गय अब तुम्हारी याद नहीं कर रहे, तुम ही उनकी याद कर रहे हा । तुम्हारा यह राग है, और उस राग के कारण से तुम बार-बार अकेलेपन का चिंतवन करते हो । अकेलेपन का चितवन करते हैं | जिस समय आपस में एक दूसरे की लड़ाई हो जाती है, तब हम जब पति-पत्नी की आपस में लड़ाई हो जाती है, तो पत्नी एक कोने में बैठ जायेगी कि मेरा कोई नहीं है, हमारा कोई साथ देने वाला नहीं है। जबकि उसके चार बच्चे हैं, पति है, ससुर है, सास है। इस प्रकार सब कुछ होने के बाद भी, जब लड़ाई हो जाती है, तो द्वष में आकर के हम कई बार अकेलेपन का अनुभव करत हैं। जिस समाज में रहकर के तुमने बहुत दान दिया, समाज में रहकर के बहुत-मान और प्रतिष्ठा प्राप्त हुई, इस समाज में रहकर के तुमने दीन और दुखियों की सेवा की, पर जिस समय आपकी उसी समाज से लड़ाई हो जाती है, उस समय तुम सोचते हो कि अब मेरा इस समाज में कोई नहीं है। ये जो अकेलेपन का अहसास हो रहा है कि ये समाज मेरा नहीं है, ये तुम्हारे द्वेष के कारण है। यह परभाव है, ये तुम्हारे नही हैं, ये कषायें अगर किंचित मात्र भी आत्मा में रहती हैं, तो उस आत्मा को मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती है। भरतेश्वर पहुँच गये, आदिश्वर के पास! आदिश्वर आप तो परम पिता हैं, परमेश्वर हैं, कवलज्ञानी हैं, पतितों के उद्धारक हैं, बताओ मेरा छोटा भाई एक वर्ष से तपस्या कर रहा है, उसे केवलज्ञान क्यों नहीं हो रहा है? आदिश्वर कहते हैं-बाहुबली क मन में थोड़ा-सा विकल्प रह गया है | ह भरतेश्वर! उसके लिये विकल्प रह गया है कि मेरा तो इस संसार में कुछ नहीं है, यह बसुधा मेरी नहीं है, लेकिन मैं भरत (576
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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