SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 589
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विचार करती है कि अब हमारा इस संसार में, कोई नहीं है, जो कुछ था चला गया, अब कोई नहीं संसार में, सब कुछ होते हुय भी उसे कुछ नजर नहीं आ रहा । दिगम्बर संत ऐसे ही होते हैं, वो भीड़ में रहकर भी अकेलेपन का चितवन करत हैं | जब आपके घर में कोई गमी हो जाती है, तब बहुत सारे लोग आपके पास आते हैं, बहुत भीड़ होती है, जितनी भीड़ आपके घर पहले कभी नहीं हुई, लेकिन फिर भी आप यही विचार करते हा कि मेरा इस संसार में कोई नहीं है | ऐसा विचार तो आपने कई बार किया, लेकिन राग के कारण से किया | यही भावना अगर वीतरागता के कारण से करना प्रारम्भ कर दो तो तुम्हारा कल्याण हो जायगा । एक नगर में एक मुनि महाराज जी पधार, जैस ही जिन मंदिर में उनका प्रवेश हुआ, प्रवचन हुय, उसके बाद कुछ लोग मुनि महाराज जी के पास पहुँचे और बोले कि हमारे नगर में एक अत्यंत दुःखित महिला रहती है, वह बहुत समय से आर्त, रौद्र ध्यान परिणाम कर रही है, बहुत समय हो गया है, उसका पति मर गया है। महीनों से उसन अन्न का एक दाना भी नहीं खाया है, केवल शय्या पर पड़ी रहती है, शोक करती रहती है, आप अगर जाकर के उसको संबोध दें तो शायद उसका जीवन अन्तिम समय में सफल हो जाये | यह सुनकर के महाराज ने कहा कि ठीक है, अगर हमारे उपदेश से उसकी गति सुधरती है तो चलो हम उपदेश देने चलत हैं। मुनि महाराज जी जैस ही उस दुःखयारी महिला के घर पहुँचे, वो महिला वहाँ पर कराह रही थी और कह रही थी कि मेरा इस संसार में कोई नहीं है, मैं किसके सहारे रहूँगी, मेरा इस संसार में कोई नहीं है। ___मुनि महाराज एकदम आश्चर्य चकित होकर के उस महिला से कहते हैं कि माता तूने यह मंत्र कहाँ से सीखा, यह तो महामंत्र है। (574)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy