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________________ अनादि काल से भ्रमण करते-करते आज यह दुर्लभ मनुष्य जन्म मिला है, अगर यह विषय और कषायों में ही लगा दिया, तो जीवन बेकार समझिये | सभी को अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन अवश्य ही करना चाहिये | एक राजा और रानी थे । राजा का मन धर्म करने में कम था । रानी बहुत समझाया करती थी कि राजा धर्म करो, संसार के वैभव में गर्व न करो । तब राजा कहते कि हम क्या करें ? धर्म का फल हमको मिल चुका, हमें अब धर्म की क्या जरूरत? रानी ने एक दिन कह दिया कि तुमने राजाजी सकल सुख पाए पर धर्म नहीं किया, इसलिए जब मरोगे तब ऊंट बनोगे । कुछ दिन बाद राजा मरे और ऊंट बन गए। वह एक बादशाह के घर में ऊंट पैदा हुए। थोड़े दिन बाद में रानी भी गुजर गई और वह उसी बादशाह की लड़की हुई | अब जब लड़की विवाह योग्य हुई। थोड़े दिन बाद में विवाह भी हुआ, तब उस लड़की की माँ ने यह सोचा कि इसके दहेज में कोई अच्छी चीज दूं, ऊंट बड़ा सुन्दर है, उसे मैं दहेज में दे दूं । बादशाह का भी विचार ऊंट दहेज में देने का हो गया । दहेज में ऊंट दे दिया। अब ऊंट भी बारात के साथ जा रहा था। बारात वालों ने सोचा कि ऊंट में कुछ सामान लाद ले जावं । लड़की का लहंगा, साड़ी तथा अन्य कपड़े इत्यादि मूल्यवान चीज समझकर लाद दिये, अब रास्ते में ऊंट को अपने पिछले जन्म का स्मरण होता है और दुःखी होता है । हाय ! मैंने अपनी स्त्री का लहंगा, साड़ी इत्यादि अपने ऊपर लादा है । इस प्रकार से वह मन में विचारकर दुःखी होता है, उससे चला नहीं जा रहा है। नौकर डंडे भी लगाता है, पर दुःखी होने के कारण, उससे चला नहीं जाता है। अब लड़की को भी स्मरण हो गया कि यह ऊंट तो मेरा पूर्व जन्म में पति था, परन्तु धर्म न करने के कारण अब ऊंट 553
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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