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________________ लिये तक उस सम्पत्ति का उपभोग नहीं करता था । वह इसी प्रतीक्षा में रहता था कि कहीं से निमंत्रण आ जाये और अपना काम बन जाये । परिस्थितिवश यदि उपवास भी हो जाये तो उसे भी वह तैयार रहता था, पर अपना अन्न उसके गले नहीं उतर सकता था। एक बार उसके घर बहुत बड़ा डाका पड़ गया, चोर सारा माल लूटकर ले गये। इसने हाय तोबा मचाना शुरू कर दिया, काफी भागदौड़ की चोरी का पता लगाने के लिये, लेकिन सफलता नहीं मिली । कुछ दिन निकल गये पर इनती बड़ी चोरी करने से चोरों के मन में भी पाप का भय लगा । उन्होंने आपस में सलाह की और चोरी के पाप को नष्ट करने के लिये नगर भोज दिया । उसमें सभी लोग आमंत्रित थे । ये सेठ जी भी भोज में सम्मिलित हुये, भोजन शुरू हुआ। सेठ जी ने ज्यों ही पहला ग्रास मुँह में लिया, वह नीचे गिर गया। दूसरा ग्रास मुँह में दिया, वह भी नीचे गिर गया। बाकी सभी का भोजन अच्छी तरह से चल रहा था । परन्तु सेठ जी के गले से ग्रास नीचे नहीं उतर रहा था, वह नीचे गिर जाता था । सेठजी बोले- पकड़ा गया चोर पकड़ा गया, अब मुझे मालूम हो गया कि मेरे यहाँ किसने चोरी की । इस बात को सुनकर लोग बहुत आश्चर्य चकित हुये ? भोज देने वाला तो एकदम घबड़ा गया, क्योंकि बात में सच्चाई थी। जब लोगों ने पूछा कि आप ऐसे कैसे कह रहे हैं कि चोर पकड़ा गया, आखिर कौन है चोर ? किसने तुम्हारे यहाँ चोरी की। तब वह कहता है 'यह भाज देने वाला ही चोर है', इसने ही मेरे यहाँ डाका डाला है। लोगों ने पूछा- आप किस आधार पर कह रहे हैं कि इसने ही आपके यहाँ चोरी की । वह कंजूस सेठ बोला कि मेरा माल आज तक कभी मेरे गले के नीचे नहीं उतरा, आज इस भोजन में से एक भी ग्रास मेरे गले के नीचे नहीं उतर रहा । अतः मैं दावे के 541
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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