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________________ पूछा क्या-तुम दुःख से निवृत्त होना चाहते हो? वह बोला-होना चाहता हूँ | भक्त ने कहा मुझ भगवान ने भेजा है। तुम मेरे साथ स्वर्ग चलो वहाँ सुख ही सुख है दुःख नहीं है | कुत्ता बोला, यह तो बताओ वहाँ पर रहने की सारी व्यवस्था है कि नहीं? कुत्ता एक-एक वस्तु के बारे में पूछता जा रहा था । और भक्त उसे आश्वासन दता जा रहा था । कुत्ते ने कहा ठीक है। किन्तु एक और बात पूछनी है कि स्वर्ग में गंदा-नाला है या नहीं? भक्त बोला कि गंदा नाला तो यहाँ की देन है, स्वर्ग की नहीं। कुत्ता बोला नहीं है तो फिर क्या है? फिर तो मुझे यहीं रहने दो, यहाँ ही मैं ठीक हूँ | यही हाल समस्त संसारी प्राणियों का हैं विषय-भोग, आरम्भ-परिग्रह भी न छूटें और हम आत्मा क आनन्द का भी चखते रहं, पर यह कैसे सम्भव है कि हम विष भी पीते रहें और अमृत का स्वाद भी लेते रहें। ___ एक चींटी नमक की खान में रहती थी। उसकी एक सहेली उससे मिलने गई और बोली-बहिन! तू इस खारे स्वाद में क्यों रहती है, मेरे साथ हलवाई की दुकान पर चल वहाँ तुझे अच्छा स्वाद मिलेगा, वहाँ जाकर तू बड़ी प्रसन्न होगी। सहेली के कहने से वह हलवाई की दुकान में आ गई परन्तु मिठाई पर घूमत हुये भी उसको विशेष प्रसन्नता नहीं हुई। वह बोली-बहन! मुझे तो वही स्वाद आ रहा है जो पहले आता था। सहेली सोच में पड़ गई। यह कैसे सम्भव है? मीठ में नमक का स्वाद कैसे आ सकता है। कुछ-न-कुछ गड़बड़ अवश्य है | झुककर देखा उसक मुख की ओर | अरी बहन! यह तेरे मुख में क्या है? बोली-नमक की डली | चलते समय सोचा वहाँ यह पकवान मिले या न मिले इसलिये थोड़ा-सा मुँह में रख लाई | अरे तो पहले इस नमक की डली को अलग कर दो तब इस (531)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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