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________________ दातार का सर्वप्रथम कर्तव्य है कि इस मान कषाय से दूर रहें जो सब किये कराये पर पानी फेर देता है । नाम के लिये दिया गया दान लोकेषणा युक्त होने से निरर्थक है । अतः निष्काम दातार बनो और केवल स्वव पर के कल्याण की भावना से दान दो । जो दयालु पुरुष होते हैं वे दान देने में कभी पीछे नहीं हटते। कर्ण का नाम सबने सुना है, वे दानवीर माने जाते थे । एक गरीब ब्राह्मण था उसके पिता जी की अन्तिम इच्छा थी कि उसका दाह संस्कार चंदन की लकड़ी से किया जाये। एक बार वर्षा के दिनों में उसके पिता की मृत्यु हो गई । वह ब्राह्मण तो गरीब था पर पिता की अंतिम इच्छा भी पूरी करनी थी । अतः दान में चंदन की लकड़ी माँगने दानवीर माने जाने वाले युधिष्ठिर के पास पहुँचा । युधिष्ठिर ने सभी जगह दिखवाया पर वर्षा के कारण चंदन की सूखी लकड़ी कहीं नहीं मिली । ब्राह्मण निराश होकर वापिस लौटा और चंदन की लकड़ी माँगने कर्ण के पास पहुँचा । जब कर्ण को भी कहीं चंदन की सूखी लकड़ी नहीं मिली। तो कर्ण ने अपने सिंहासन के पाये जो चंदन की लकड़ी के थे कटवा कर उस बाह्मण को दान में दे दिये । कर्ण के बारे में कहा जाता है, जब वे मृत्यु शैय्या पर लेटे थे तभी एक याचक उनसे दान माँगने आ गया । कर्ण ने कहा- वो बड़ा पत्थर उठा लाओ, वह बोला- क्या पत्थर का दान करोगे? कर्ण ने कहा- मैंने दो सोने के दाँत लगावाये थे, उन्हें तोड़कर दान में दिये तो उस याचक ने खून से लथपथ दाँत लेने से मना कर दिया। तब कर्ण ने प्रार्थना की कि भगवान क्या मैं अंत समय में दान देने से वंचित रह जाऊँगा। तभी वर्षा शुरू हो गई, जिससे सारा खून धुल गया और दानवीर कर्ण ने उन दाँतों का दान दिया । 523
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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