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________________ बहुत बड़ा विद्वान था पर गरीबी के कारण नंगे पैर पैदल ही सिद्धपुर पाटन चला गया। उसने दो दिन स कुछ नहीं खाया था और शरीर पर मैले-फटे कपड़ों को पहने हुये था। पर वहाँ उसे कौन पूछने वाला था। वह भटकता-भटकता एक जैन मंदिर के दरवाजे पर जाकर बैठ गया | मंदिर से बड़े-बड़े लोग दर्शन कर वापिस जा रहे थे जा अपनी नामवरी के लिये तिजोरी खोलकर पैसों को पानी की तरह बहान वाले थे, मगर गरीब मुसाफिर की तरफ कौन देखने वाला था | थोड़ी देर बाद एक लक्ष्मीबाई नाम की दयालु बहिन जी निकली। उसने उदयन का विकल दशा में बेठे दखा तो पूछा-यहाँ पर किसलिये आये हो? वह बाला-रोजी की तलाश में और उसने अपने बारे में सब कुछ बता दिया | बहन जी बोली-भाईजी फिर कैसे काम चलेगा? बिना जान पहचान के तो कोई पास में भी नहीं बैठने देता है। उदयन ने कहा बहनजी! कोई बात नहीं, मैं तो अपने पुरुषार्थ और भाग्य पर भरोसा करक यहाँ पर आ गया हूँ| लक्ष्मीबाई उस घर ले गई और प्रेम व आदर के साथ उसे भोजन कराया तथा अपने पतिदेव से कहकर उसके योग्य समुचित काम भी उसे दिलवा दिया, जिसे पाकर उन्नति करते हुये वह सिद्धपुर पाटन के महाराज का महामंत्री बन गया जिसन प्रजा के नैतिक स्तर को ऊँचा उठाया। सच्चा दान वही होता है जो दाता के सात्विक भावों से आत-प्रोत हो तथा जिसको दिया जाये उसको भी उन्नत बनाये | दान में भावों की महत्ता है, रुपयों की नहीं । यद्यपि आमतौर पर लोग रुपया दने वाले की अपेक्षा पचास तथा पाँच सौ देने वाले का महान् दानी कहकर उसके दान की बढ़ाई करते हैं | पर यदि कोई करोड़पति 1000 रुपये दान देता है, उसकी अपेक्षा कोई गरीब जो बड़ी मुश्किल (520)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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