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________________ हैं । पर जब मंदिर खाली हो, तो हम थोड़ा भी दान नहीं कर पाते । कारण की मान बढ़ाई की इच्छा है। कभी एकान्त में बैठकर विचार करना आखिर क्या होगा इस मान का मान बढ़ाई के लिये दिया गया दान फलदायी नहीं होता । महाभारत में एक कथन आया है कि जब युद्ध समाप्त हो गया और हस्तिनापुर के राजपद पर युधिष्ठिर का राजतिलक हो गया। तब युधिष्ठिर ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया । उसमें हजारों ब्राह्मणों को भोजन कराया गया। महाराज युधिष्ठिर कुछ लोगों से वार्ता कर रहे थे कि वहाँ एक नेवला आया जिसका आधा शरीर स्वर्णमयी था, वह जूठन में बार-बार लोटने लगा । तब महाराज युधिष्ठिर बोल हे नेवले ! तू यह क्या रहा है? तब नेवला बोला- महाराज! एक गाँव में एक ब्राह्मण, उसकी पत्नी, लड़का तथा लड़क की बहू चार जीवों का परिवार रहता था । वे बहुत ही गरीब थे, खेत से शिला बीन कर लाते थे । और उससे गुजर-बसर करते थे। कभी-कभी तो कई दिन तक उन्हें भूखे रहना पड़ता था । एक दिन कई दिन भूखे रहने के बाद जो शिला बीनकर लाये थे, उससे उन्होंने आठ रोटियाँ बनाकर सभी खाने बैठे ही थे कि बाहर किसी की आवाज आई, मैं सात दिन का भूखा हूँ, भूख की वेदना सहन नहीं हो रही है। उसकी इस प्रकार की वाणी सुनकर ब्राह्मण को करुणा आई और अपने हिस्से की रोटी उसको दे दी, इन विचारों क साथ कि मुझे तो केवल तीन दिन ही हुए हैं, मुझसे ज्यादा जरूरी उसको है । तब ब्राह्मण की पत्नी लड़के तथा बहू सभी ने अपने हिस्स की रोटियाँ उस भूखे को खिला दीं। उन रोटियों को खाकर वह तृप्त हो गया और उसके हाथ धोने से जो पानी जमीन पर फैल गया उसमें लौटने से मेरा आधा शरीर स्वर्णमयी हो गया था । अब आधा शरीर स्वर्णमयी मुझे अच्छा नहीं लगता, सोचा था कि महाराज धर्मराज यज्ञ 513
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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