SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 522
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक नगर में एक गरीब महिला रहती थी, उसके पास द्रव्य एवं बर्तन नहीं थे। एक दिन उस नगर में एक महान तपस्वी मुनिराज विहार करते हुए आ गये । उस महिला के मन में मुनि महाराज का आहार करवाने की बात आई । लेकिन घर में कुछ था ही नहीं । मन में विचार किया कि बाजरा रखा है, मिट्टी की हांडी और लोहे का तसला । हांडी में बाजरे की खिचड़ी बना लेती हूँ और तसले में पैर धो लूंगी। ऐसा विचार करके वह करवा और सरई लेकर पड़गाहन के लिये खड़ी हो गई । भाग्य की बात है कि मुनि महाराज का पड़गाहन उसी के यहाँ हो गया । नगर में बड़े-बड़े साहूकार सोने के कलशों से युक्त छत्तीस प्रकार के भोजन के लिए पड़गाहन हेतु खड़े थे । लेकिन मुनिराज गरीब महिला के द्वारा पड़गाहे गये । वह मुनिराज को लेकर झोपड़े में गई । लोहे के तसले में पैर धोये । वह तसला सोने का हो गया। फिर बाजरे की खिचड़ी से महाराज को आहार करवाया । मुनिराज ऋद्धिधारी थे, उस महिला के यहाँ रत्न बरसे। बिना इच्छा के त्याग में बड़ा बल है । एक पड़ोसन को ईर्ष्या हुई, उसने सोचा जब बाजरे की खिचड़ी से आहार कराया सो इसके यहाँ रत्न बरसे हैं । मैं कल छत्तीस प्रकार के व्यंजन बनाऊँगी मेरे यहाँ तो ना जाने कितने रत्न बरसेंगे। अगले दिन उसने ऐसा ही किया। महाराज आये, लेकिन उसे इच्छा थी रत्न की वहाँ दान नहीं था । महाराज पड़गाये गये । पहली बार पानी दिया वह पानी उबलता हुआ था। महाराज के हाथ पर डाल रही थी और ऊपर को देख रही थी, गर्म-गर्म पानी हाथ पर पड़ा अंजुली छूट गई, अन्तराय हो गया और आँगन में अंगारे बरसने लगे । तब उसने महाराज से पूछा, ऐसा क्यों हुआ? मुनि महाराज जी ने कहा- तुम्हारा दान सच्चा दान नहीं है, तुम्हें मान था, इच्छा थी, 507
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy