SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 516
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ होने पर वे दोनों आपस में लड़ मरे और क्रम से सूकर और व्याघ्र हो गये। एक दिन गुप्ति और त्रिगुप्ति नाम के दो मुनिराज वन की गुफा में ठहर गये। सूकर को जातिस्मरण हो जाने से वह उनके पास आया और शान्ति भाव से उपदेश सुनकर कुछ व्रत ग्रहण कर लिये । इसी समय वह व्याघ्र वहाँ आया और मुनियों को खाने के लिए गुफा में घुसने लगा। सूकर ने उसका सामना किया और अन्त में लड़ते-लड़ते दोनों ही मर गये । सूकर के भाव मुनि रक्षा के थे, इसलिये अभयदान के फल से वह मरकर अनेक ऋद्धियों सहित देव हो गया और व्याघ्र के भाव मुनिराजों के भक्षण के थे, अतः वह मरकर नरक चला गया । दान से ही संसार में गौरव प्राप्त होता है। सभी को अपनी शक्ति अनुसार दान अवश्य देते रहना चाहिये । देयात् सतोकमपि स्तोकं न व्यपेक्षा महोदये । इच्छानुसारिणी शक्तिः कदाकस्य भविष्यति ।। थोड़े में थोड़ा तथा उसमें भी थोड़ा-थोड़ा देते ही रहना चाहिये | बहुत धन होगा, तब दान देंगे, ऐसी अपेक्षा नहीं रखना चाहिये, क्योंकि इच्छानुसार शक्ति कब किसकी हुई है ? लखपति, करोड़पति बनना चाहता है, करोड़पति, अरबपति बनना चाहता है, व्यक्ति अरबों-खरबों को पाकर भी तृप्त नहीं हो सकता है, क्या कभी ईंधन से अग्नि की तृप्ति हुई है ? नहीं । अतः यदि संपत्ति को बढ़ाने की इच्छा है, तो दान देते ही रहना चाहिये । जिस प्रकार कुँए से जल निकालन से बढ़ता है, वैसे ही दान देने से धन बढ़ता है । दान देने वाला कभी गरीब नहीं होता। उसका भण्डार सदा भरपूर रहता है। सभी को स्व-पर कल्याण की भावना से अपनी 501
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy