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________________ चला जाये और सम्राट के सामने हाथ फैला दिये जायें, ताकि कुछ ऐसा मिले जिससे यह भीख माँगना हमेशा के लिये छूट जाये । आज भिखारी भी पूरा मन बनाकर राजदरबार की ओर आगे बढ़ा। उसने अपनी झोली में थोड़े से दाने डाल रखे थे । भिखारी ने देखा सम्राट का रथ स्वयं मेरी ओर आ रहा है। अहोभाग्य है मेरा, मैं तो उनके दरबार में जा रहा था पर आज तो सम्राट स्वयं मुझे रास्ते में मिल गये । बस आने दो पास में रथ, हाथ फैला दूँगा और माँग लूंगा सम्राट से ताकि हमेशा-हमेशा के लिये इस भीख माँगने से छुटकारा मिल । भिखारी सड़क के किनारे खड़ा होकर सोच ही रहा था कि रथ आकर एक दम उसके सामने रुक गया और राजा ने रथ से उतरकर भिखारी के सामने हाथ फैला दिये । राज्य के संकट का सवाल है, भिक्षा में कुछ मिल जाये ताकि संकट का निवारण हो । I भिखारी तो हक्का-बक्का रह गया, उसे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है । वह तो कुछ और ही सोच रहा था पर यहाँ तो सम्राट स्वयं ही माँग रहे हैं, अब वह क्या करे ? जिसने कभी न दिया हो और देने की स्थिति बन जाये तो उसकी दशा क्या होगी, आप स्वयं समझ सकते हैं। भिखारी की स्थिति भी वही थी। उसके तो मानों होश उड़ गये । भिखारी ने भारी मन से झोली में हाथ डाला, कुछ दाने मुट्ठी में आ गये । पर इतने दाने कैसे दें ? इस विचार से कम करते-करते सिर्फ एक दाना निकला और राजा के हाथ पर रख दिया। राजा ने उसे लेकर मुट्ठी बन्द की और राजमहल की ओर वापिस चला गया । यहाँ भिखारी की दशा तो ऐसी हो गई जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो। उसने कई जगह भीख माँगी, उसे प्रतिदिन की अपेक्षा 495
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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