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________________ पढ़ाये -'मा रुष, मा तुष ।' वे इन शब्दों को रटने लगे । इन शब्दों का अर्थ यह है कि रोष मत करो, तोष मत करो। अर्थात् राग-द्वेष मत करो, इससे ही सर्व सिद्धि होती है। कुछ समय बाद उनको यह भी शुद्ध याद न रहा, तब तुष- माष ऐसा पाठ रटने लगे, दोनों पदों के स और तु भूल गये और तुष- माष ही याद रह गया । एक दिन वे यही रटते एवं विचारते हुये कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक स्त्री उड़द की दाल धो रही थी । स्त्री से कोई व्यक्ति पूछता है कि तू क्या कह रही है? स्त्री ने कहा- तुष और माष भिन्न-भिन्न कर रही हूँ । यह वार्ता सुनकर उन मुनि ने यह जाना कि यह शरीर तुष है और यह आत्मा माष है। दोनों भिन्न-भिन्न हैं इस प्रकार भाव जानकर आत्मानुभव करने लगे । कुछ समय बाद घातिया कर्मों का नाश करके केवलज्ञान को प्राप्त हो गये । इस प्रकार अपने व्रतों का पालन करते हुये शिव कुमार मुनिराज ने 'तुष-मास' जैसे शब्दों को रटते हुये भावों की विशुद्धता से केवलज्ञान पाया । आचार्य समझा रहे हैं यदि संसार के बंधन से छूटना चाहते हो तो जिनेश्वर देव द्वारा बताई गई दीक्षा धारण करो । उस तप से शरीर का सुखियापना नष्ट हो जाता है । उपसर्ग / परीषह सहने में कायरता का अभाव हो जाता है, इन्द्रियों के विषय में प्रवर्तन का अभाव हो जाता है । श्री जिनेन्द्र वर्णी जी ने लिखा है यह शरीर तो अशुचि है, दुःखों को उत्पन्न करने वाला है और विनाशिक है, इसको कितना भी खिलाओ, पिलाओ, सेवा करो पर अंत में यह नियम से धोखा ही देगा । शरीर की चिन्ता क्यों करते हो? यह है ही किसलिये ? तपश्चरण के द्वारा क्षीण हो, तो हो । आप कारखाना लगाते हैं और उसमें मशीने फिट करते हैं, तो किसलिये ? यदि मशीन को चलाया तो घिस जायेगी? क्या ऐसा अभिप्राय रखकर माल बनाना बंद करते हैं आप? 466 —
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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