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________________ 12 प्रकार का तप उत्तम धर्म है । यह दुर्गति का परिहार करने वाला है, दुर्गति में तो यह जीव अनादि से ही घूमता चला आया है, इस मनुष्य गति को हम सुगति कह सकते हैं । एकमात्र यही ऐसी गति है जिसमें उत्कृष्ट संयम व तप किया जा सकता है । यदि इस मनुष्य भव को इन विषय-भोगों में ही खो दिया तो बताओ कौन-सा भव ऐसा है जहाँ हित का मार्ग मिल सकेगा? जैसे कोई अन्धा व्यक्ति किसी नगर में जाना चाहता है, बता दिया लोगों ने कि यह नगर के किनारे की दीवाल है, सो हाथ से इस दीवाल को पकड़ते हुये चले जाओ और जब दरवाजा मिले तो उसमें घुस जाना । सो वह उस दीवाल के सहारे चलता जाता है। खूब चला और जहाँ दरवाजा आया, सो अपना सिर खुजलाने लगा और पैरों से चलना बंद न किया, दरवाजा निकल गया, फिर चक्कर लगाये। इसी प्रकार कई योनियों में चक्कर लगाते हुये यह आज मनुष्य जीवन का दरवाजा आया है, इसे विषयों में ही खो दिया, इन विषयों की ही खाज खुजलाने लगा तो यह दुर्लभ मनुष्य भव व्यर्थ चला जायेगा और पुनः अनन्त काल तक संसार में ही भटकना पड़ेगा । रत्नत्रय के साथ बाह्य और अन्तरंग दोनों प्रकार के तपों का आलंबन लेकर साधना करने वाला ही मुक्ति को प्राप्त करता है । यही एक मुक्ति का मार्ग है । अतः सभी को प्रमाद को छोड़कर अपनी शक्ति प्रमाण इन बारह तपों को करने का अभ्यास शुरू कर देना चाहिये, जिससे एक दिन पूर्ण तपस्वी बनकर मुक्ति को प्राप्त करें । जिन्होंने भी तप मार्ग को अपनाया नर से नारायण बने । बिना तप के आज तक किसी को भी मुक्ति की प्राप्ति नहीं हुई । एक बार अकबर ने बीरबल से कहा- बीरबल तुम्हें काला कोयला सफेद करके दिखाना है । बीरबल तो जरा सकते में आ गये । कोयला 459
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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