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________________ (ङ) तत्त्वरूपवती धारणा :- फिर वही ध्यानी सोचे कि मरा आत्मा सर्व कर्मों स रहित व शरीर रहित पुरुषाकार सिद्ध भगवान के समान शुद्ध है। ऐसे शुद्ध आत्मा में तन्मय हो जावे | यह तत्त्वरूपवती धारणा है। चौथी विधि यह है कि पदों के द्वारा पदस्थ ध्यान किया जावे | उसके अनेक उपाय हैं। कुछ यहाँ दिय जाते हैं(क) हैं मंत्रराज का चमकता हुआ नासाग्र पर या भौंहों के मध्य पर स्थापित करके चित्त को रोके | कभी मन हटे तो मंत्र कहे व अरहंत-सिद्ध का स्वरूप विचारा जावे | (ख) ऊँ प्रणव मंत्र को हृदयकमल के मध्य में चमकता हुआ विचारें | चारों तरफ 16 सोलह स्वर एवं कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग एवं य र ल व श ष स ह इन सब व आठ पत्तों पर शेष अक्षरों को बांट लें और ध्यान करें | कभी-कभी ऊँ का उच्चारण करें, कभी पंच परमेष्ठी के गुण विचारें । (ग) नाभि स्थान में या हृदय स्थान में सफेद रंग का चमकता हुआ आठ पत्रों का कमल विचारें | मध्य कर्णिका में सात अक्षर का णमो अरहंताणं” लिखा विचारें चार दिशाओं के चार पत्रों पर क्रम से "णमो सिद्धाणं, णमा आइरियाणं, णमोउवज्झायाणं, णमोलोए सव्वसाहूणं” इन चार मंत्र पदों को लिखें, चार विदिशाओं क चार पत्रों पर “सम्यग्दर्शनाय नमः, सम्यग्ज्ञानाय नमः, सम्यक्चारित्राय नमः, सम्यक्तपसे नमः” इन चार मंत्रों को स्थापित करे, फिर क्रम से एक एक पद मन को रोक कर कभी-कभी पद बोलकर कभी अरहंत आदि का स्वरूप विचार कर ध्यान करे। (445)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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