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________________ डुबोएं | इस तरह बार-बार करें। कभी-कभी आत्मा का स्वभाव विचार लें कि यह आत्मा परम शुद्ध ज्ञानानन्दमयी है । दूसरी विधि यह है कि अपने आत्मा को शरीर प्रमाण आकारधारी स्फटिक मणि की मूर्ति के समान विचार करके उसी के दर्शन में लय हो जावें । जब मन हटे तब ऊपर बताये मंत्र पढ़ते रहें, कभी-कभी आत्मा का स्वभाव विचारते रहें । तीसरी विधि यह है कि पिंडस्थ ध्यान करें । इसकी पाँच धारणाओं का क्रमशः अभ्यास करके आत्मा के ध्यान पर पहुँच जाएं। धारणाओं का स्वरूप यह है : (क) पार्थिवी धारणा :- इस मध्य लोक को सफेद निर्मल क्षीर समुद्रमय चिंतवन करें। उसके मध्य में तपाए हुए सुवर्ण के रंग का एक हजार पत्रों का कमल, एक लाख योजन का चौड़ा जम्बूद्वीप के समान विचारें, इसके मध्य में कर्णिका को सुमेरु पर्वत के सामन पीत वर्ण का सोचें । इस कर्णिका के ऊपर सफेद रंग का ऊँचा सिंहासन विचारें । फिर ध्यान करें कि मैं इस सिंहासन पर पद्मासन से बैठा हूँ । प्रयोजन यह है कि मैं सर्व कर्म मल को जलाकर आत्मा को शुद्ध करूं । इतना चिन्तवन पार्थिवी धारणा है । (ख) आग्नेयी धारणा :- उसी सिंहासन पर बैठा हुआ यह सोचे कि मेरे नाभिमण्डल के भीतर एक सोलह पत्रों का निर्मल सफेद खिला हुआ कमल ऊपर की ओर मुख किये हुये है । उसके सोलह पत्रों पर सोलह अक्षर पीत रंग के लिखे विचारें । अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं अः । उस कमल के नीचे कर्णिका में चमकता हुआ र्ह अक्षर विचारें फिर इस 443
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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