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________________ उपचार किया, इतने में शिकारी आकर कहन लगा कि यह मरा शिकार है, इसे मुझे दे दो | बुद्ध बोले-यह हंस तुम्हारा नहीं है | शिकारी लड़ने लगा और जोर-जोर से बोला कैस नहीं है? हमने ही तो इसका शिकार किया है, यह मेरे बाण से ही तो घायल हुआ है | गौतम बुद्ध बोले कि सोचा मालिक मारने वाला है या बचाने वाला। जो प्राण ले वह मालिक नहीं है, जो प्राणों की रक्षा करे, वह मालिक है। 4. स्वाध्याय तप - स्वाध्याय को परम तप कहा जाता है | "स्वाध्यायः परमं तपः ।” स्व माने आत्मा और अध्याय माने अध्ययन करना। आत्मा का अध्ययन करना, चिंतन-मनन करना। किसी का स्वाध्याय का नियम है तो झट 3-4 लाइनें शास्त्र की पढ़कर चले गये यह स्वाध्याय नहीं है। ____ हमने जो कुछ पढ़ा है, या ज्ञानी पुरुषों से जो कुछ उत्तर मिला है, उसका बार-बार मनन-चिन्तन करना अनुप्रेक्षा स्वाध्याय है। निर्णीत विषय को स्थिर / कंठस्थ, धारण करने के लिए बार-बार पाठ करना आम्नाय स्वाध्याय है, विषय पर पूरा अधिकार हो जाने पर दूसरे जीवों के हितार्थ उपदेश देना धर्मापदेश नामक स्वाध्याय है। ज्ञानोपयोग बिना आत्मा का कल्याण नहीं। अतः हमें क्रम से स्वाध्याय में प्रगति अवश्य करना चाहिय | स्व का जहाँ अध्ययन हो वही स्वाध्याय है। सबकी तो हमने व्यवस्था की पर अपनी कोई व्यवस्था न की। संसार में अज्ञान दुःख का कारण है और एक मात्र सम्यग्ज्ञान सुख की खान है। सभी को जिनवाणी का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिये। जिनवाणी माक्षमार्ग में साक्षात् माता के समान है। जिस प्रकार माँ पाल-पोसकर पुत्र को सक्षम और सामर्थ्यवान् बनाती (438)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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