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________________ सुखिया रहकर ज्ञान अर्जित किया है, तो उपद्रव आने पर विचलित हो जाने का भय रहता है। ___हमें ये तप बिना लौकिक वान्छा के करना चाहिये | सम्यक श्रद्धा व संयम के साथ किया गया तप ही मुक्ति पथ की आर ल जाने वाला है | तप करके लौकिक इच्छा करना गेहूँ बोकर भूसे की याचना करना है। इसके विषय में एक ढोंगी तपस्वी की कहानी आती है - एक बार राजा की सभा में लोग एक साधु की प्रशंसा कर रहे थे कि वह साधु बहुत अच्छा है, छ:-छ: महीने के उपवास कर लता है | यह सब सुनकर मंत्री ने कहा महाराज मुझे तो वह ढोंगी मालूम होता है | तब राजा ने कहा उसकी परीक्षा कर ली जाय, वह सच्चा है या नहीं। मंत्री ने कहा कुछ दिन के लिये उनकी पूजा स्तुति करना बंद कर दिया जाय और नगर का कोई भी व्यक्ति उनके दर्शन के लिये न जाये और फिर कुछ आदमी छिपकर देखें की साधु क्या करता है? राजा न आज्ञा दी और ऐसा ही किया गया। किसी को अपने पास न आया देखकर साधु जी को चिन्ता हुई और देखने लगे नगर की ओर सारा दिन व्यतीत होने जा रहा है और अभी तक कोई नहीं आया पूजा करने वाला, प्रशंसा करने वाला | साधु जी मन में ऐसा विचार करने लगे | तप छोड़ दिया साधु जी ने और जैसे-तैसे रात्रि व्यतीत की। दूसरे दिन भी जब कोई नहीं आया उनके तप की प्रशंसा करने वाला, तो फिर देर ही क्या थी। इधर-उधर दखकर छोड़ दिया साधु वेश और भाग गया नजर बचा के | लोगों ने राजा से कहा-वह सच्चा तपस्वी नहीं था, मात्र ढांगी था। उसके अन्दर सच्चाई नहीं थी, सत्य नहीं था, तभी तो तप छोड़ दिया। (434)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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