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________________ कबीर दास जी ने अपने अनुभव के आधार पर संसारी प्राणी की दशा को दर्शाया है। वह कहते हैं कि यहाँ मन मरता है, माया मरती है और शरीर भी बार-बार मरता है, लेकिन इसकी तृष्णा का अंत आज तक नहीं हो पाया। एक कथानक है यमराज क पत्र - एक राहगीर चला जा रहा था रास्ते में उसे एक काली परछाई मिली। वह काली परछाई उस राहगीर के साथ-साथ चलने लगी। दानों ने साथ-साथ चलकर मीलों रास्ता तय कर लिया, चर्चायं भी होती रहीं, पर आपस में एक दूसरे का परिचय नहीं हो पाया। फिर जब अलग-अलग होने लगे तो उस राहगीर ने उस मनुष्याकृति वाली काली परछाई से कहा कि तुम मुझ जानती हो? मैं नगर सेठ हूँ? सभी लोग मुझे बहुत मानते हैं, धन-वैभव बहुत है, कभी आवश्यकता पड़े तो याद करना। ये तो रहा मेरा परिचय, अब आप अपना परिचय भी दं ताकि हम फिर कभी मिल सकें | ऐसा पूछने पर वह काली परछाई बाली-तुम मुझे नहीं जानते? मैं तो यमराज हूँ .. .......... यमराज ! जैसे ही उसने सुना यमराज तो वह तो काँप गया, पसीना-पसीना हो गया। अरे! तुम और हमारे साथ में, क्या बात है? फिर धीर से राहगीर ने यमराज से पूछा-आप यहाँ पर क्यों आय? "बस, मेरा काम तो एक ही है, धरती पर से लोगों का उठाने आता हूँ |' यह सुनकर सेठ घबरा गया। तो क्या तुम सबको लेने आते हा? 'हाँ! बारी-बारी से सबको लने के लिये को आता हूँ | सेठ अब चतुराई से बात करने लगा | बोला-देखो! हम दोनों साथ-साथ चले हैं, घनिष्ठ मित्रता हो गई है, कहा तो ऐसा गया कि कभी सात कदम भी किसी के साथ चल लो तो दोस्त हो जाते हैं फिर हम-तुम तो मीलों साथ चले हैं | जरा मित्रता का लिहाज करना | यदि मेरा नम्बर आय तो कुछ दिन के लिए छोड़ देना। सठ जी की बात सुनकर (426)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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