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________________ हाथी ने स्नान किया और बाहर जाकर धूल का सूंड में भरकर अपने ऊपर डाल लिया । पर-सम्बन्ध में हानि-ही-हानि है | अकेला है, तो बड़ा सुख है और यदि दुकेला हा गया, विवाह हो गया ता क्या मिला? चौपाया हो गया। दो पैर खुद के, दा पैर स्त्री के | चौपाया जानवर कहलाता है | दो हाथ-पैर वाला मनुष्य था, चौपाया हो गया । बच्चा हो गया तो छैपाया हा गया। भंवरा हा गया। बच्चे का भी विवाह हो गया तो अठपाया हो गया अर्थात् मकड़ी बन गया | मकड़ी का जाल होता है | वह स्वयं जाल बनाती है और उसी में फँस जाती है। इसी प्रकार इसने स्वयं जाल बनाया और 70-80 वर्ष तक उसी में फँसा रहता है। इनमें हित का नाम ही नहीं है। यदि परपदार्थों से अपना हित मानते हो तो समझो कि हम भ्रम में पड़कर उल्ट मार्ग पर चल रहे हैं। अरे, इन विषय-कषाय के मार्ग को छोड़ो और संयम-तप के मार्ग को अपनाकर अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त करो। जिन्होंने अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ली, वे मुनिराज ही वास्तव में सुखी हैं। और एक दिन सम्पूर्ण इच्छाओं का अभाव करके परमात्म-पद को प्राप्त करेंगे। एक मुनिराज किसी जंगल में तपश्चरण करते थे। एक बार एक राजा वहाँ से गुजर रहा था। उसने उनकी निर्ग्रन्थ मुद्रा दखकर सोचा कि यह ता बहुत दरिद्र हैं, इनके पास एक लंगोटी तक नहीं है, अतः हमें इनकी कुछ सहायता करनी चाहिये | ऐसा विचार कर राजा ने अपने मंत्री को 100 स्वर्ण मुद्रायें उस दरिद्र साधु को देने को कहा | मंत्री न साधु से जाकर कहा कि राजा ने ये मुद्रायें आपके लिये भेजी हैं। इन्हें लेकर आप अपनी दरिद्रता दूर कर लें, यह सुनकर मुनिराज कहते हैं, इन्हें गाँव में बाँट दो | राजा का मंत्री राजा के पास पहुँचता है और साधु का उत्तर बताता है, राजा सोचते (423)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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